
भाटापारा. दूध से बनी मिठाइयां और अन्य सामग्री में मिलावट अब उपभोक्ता भी जान सकेगा। एफएसएसएआई ने इसके लिए प्रारंभिक जानकारियां साझा कर दी है। जिसकी मदद से अखाद्य या अमानक सामग्री की पहचान की जा सकेगी। साथ ही शिकायत भी की जा सकेगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई को सही दिशा मिल सकेगी।
गाइडेंस ऑफ कंज्यूमर्स के नाम से जारी यह जानकारी राज्यों में काम कर रहे खाद्य व औषधि प्रशासन के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचाए जाने की योजना पर काम चालू किया जा चुका है। प्रथम चरण में इसमें 21 ऐसी मिठाइयां और अन्य खाद्य सामग्री में मिलावट की पहचान आसान तरीके से किए जाने के लिए ऐसी दुग्ध सामग्री की सूची जारी कर दी गई है, जो ना केवल त्योहार या पर्व बल्कि पूरे साल हर जगह मिल करती है। प्राधिकरण ने दूध से बनी इन सामग्रियों को पहले क्रम पर इसलिए रखा है, क्योंकि यह नाम से ही खरीदी जाती रही हैं।
इसलिए दूध से बनी सामग्री
गाइडेंस ऑफ कंज्यूमर्स के नाम से जारी हो रही इस नई पहल को इसलिए चालू किया जा रहा है, क्योंकि दूध से बनी विभिन्न खाद्य सामग्री और मिठाइयां त्योहार, शादी या पर्व पर भी खूब बनाई और बेची जाती है, लेकिन मिलावट की पहचान आसान नहीं है। इसलिए प्राधिकरण की पहल के बाद खाद्य एवं औषधि प्रशासन इसकी जानकारी सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहा है, ताकि आसान पहचान की मदद से मिलावट जानी जा सके।
21 सामग्री, तीन स्तर पर पहचान
एफएसएसएआई ने दूध से बने 21 ऐसे खाद्य सामग्रियों में मिलावट की सबसे ज्यादा शिकायत का मिलना पाया है। चूंकि अधिकांश सामग्रियां दैनिक उपयोग में ज्यादा है। इसलिए इन में मिलावट की पहचान की जानकारी उपभोक्ता तक पहुंचना जरूरी है। पहल इससे ही की जा रही है। इसमें 21 दूग्ध उत्पाद को लिया गया है। शिखर पर खोवा को रखा गया है। 3 श्रेणी स्वाद, संरचना और रूप-रंग के आधार पर मिलावट की आसान पहचान का तरीका बताया गया है। इसमें खोवा का स्वाद, छूने पर असहज लगना और रूप-रंग से पहचान की जा सकती है।
इसी तरह पेड़ा को स्वाद के आधार पर पहचाना जा सकता है। बर्फी को उसकी नरम और ठोस प्रकृति से पहचानी जा सकती है। मिलावट होने पर इसका रंग भी बदल जाता है। कलाकंद और गुलाब जामुन के भीतरी हिस्से का पीलापन उसमें मिलावट को जाहिर करता है। जबकि स्वस्थ और सही में यह दिखाई नहीं देती। वासुंदी की भी पहचान इसी तरीके से की जा सकती है। रबड़ी का ज्यादा पीलापन यही संकेत देता है। खीर को रंग और मीठेपन का स्वाद बदलने से पहचाना जा सकता है। खटास या पीलापन बासी और मिलावट का प्रमाण है।
छेने की मिठाइयों में यदि स्पंज जैसा अनुभव ना हो रहा हो तो यह संदेह को जन्म देता है। पनीर को इसका पीला होता रंग पुराना होने को प्रमाणित करता। संदेश यदि ठोस हो चुकी हो तो शंका को पक्का करती है। रसगुल्ला यदि स्वस्थ है तो उसकी पहचान उसका नरम होना ही बताता है। दही में यदि बुलबुले हैं तो उसे सेवन नहीं करना ही सही होगा। श्रीखंड ठोस हो चुका है तो यह संकेत देता है कि मिलावट संभावित है। घी यदि पारदर्शी है तो सही है। लस्सी एकदम सफेद हो तो सेवन के योग्य है।
इन चार में इसकी मिलावट
घीए चीज़, कन्डेन्स्ड मिल्कए खोवा और दूध पाउडर में खुशबू और अप्राकृतिक रंग, मक्खनए मीठी दही और घी में वनस्पति मेरीग्रेंस, रबड़ी में ब्लाटिंग पेपर, खोवा, छेना पनीर और घी में स्टार्च पाउडर की मिलावट आसानी से किए जाने की शिकायतें आम हो चली है। इन में मिलावट की पहचान बाजार में आसानी से उपलब्ध केमिकल की मदद से की जा सकती है। प्राधिकरण ने इन केमिकल के नाम भी उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की तैयारी कर ली है। जिनकी कुछ बूंदें ही मिलावट की पहचान के लिए काफी हैं।
Published on:
06 Nov 2020 04:13 pm
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