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बैंगलोर

मैसूरु में प्रभावशाली प्रदर्शन करने में सफल रही भाजपा

विधानसभा चुनाव में पुराने मैसूरु क्षेत्र में भले ही भाजपा को बड़ी सफलता नहीं मिली है

बैंगलोरMay 18, 2018 / 04:56 am

शंकर शर्मा

 karnataka Assembly elections 2018

मैसूरु. विधानसभा चुनाव में पुराने मैसूरु क्षेत्र में भले ही भाजपा को बड़ी सफलता नहीं मिली है लेकिन उसने मैसूरु जिले में एक बार फिर से अपनी प्रभावशाली वापसी करने में सफलता पाई है। भाजपा को मैसूरु जिले में तीन और चामराज नगर में एक सीट पर सफलता मिली है। इसमें मैसूरु शहर की तीन में से दो सीटें चामराजा और कृष्णराजा में भाजपा का कमल खिला है जबकि नंजनगुड़ भी भाजपा की झोली में गई है।

वहीं कांग्रेस का मजबूत गढ़ माने जाने वाले चामराजनगर जिले के गुंडलपेट सीट पर भी भाजपा को सफलता मिली है। इन चार सीटों की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा अब तक मैसूरु जिले में शहरी क्षेत्र तक सीमित मानी जाती थी लेकिन उसने इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में न सिर्फ मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है बल्कि नंजनगुड़ और गुंडलपेट में सफलता भी मिली है।


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन चार सीटों पर मिली भाजपा की जीत के पीछे न सिर्फ मोदी लहर ने काम किया बल्कि जमीनी स्तर पर भाजपा ने जो बूथ प्रबंधन सहित मतदाताओं तक पहुंचने की नीति बनाई, उसका बड़ा लाभ चुनाव में मिला। कुछ महीने पूर्व तक जहां भाजपा में टिकट बंटवारे से लेकर अन्य मुद्दों पर नेताओं में एक राय नहीं थी, वहीं चुनाव के दौरान भाजपा नेतृत्व के निर्देश पर अधिकांश भाजपा नेताओं ने पार्टी उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। कृष्णराजा में भाजपा ने एसए रामदास की उम्मीदवारी पर मुहर नामांकन दाखिल करने के दो दिन पूर्व लगाई थी, इसके पीछे का बड़ा कारण रामदास का स्थानीय स्तर पर विरोध था। लेकिन भाजपा ने न सिर्फ रामदास पर भरोसा जताया बल्कि असंतुष्टों को रामदास के समर्थन में खड़ा किया। इसी प्रकार चामराजा में एल. नागेंद्र को उम्मीदवार बनाने को लेकर शुरू में कुछ विरोध देखा गया था लेकिन बाद में पार्टी ने कार्यकर्ताओं को नागेंद्र के पक्ष में एकजुट किया और बूथ प्रबंधन का नतीजा रहा कि वह चामराजा में जीत हासिल करने में सफल रही।


नंजनगुड़ में जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए बी. हर्षवद्र्धन को उम्मीदवार बनाया। माना जाता है कि कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शमिल हुए पूर्व मंत्री वी. श्रीनिवास ने भाजपा की रणनीतियों को नंजनगुड़ में साकार करने में बेहद अहम भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त लिंगायत-वीरशैव समुदाय को भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में लाने में पार्टी ने अपनी कुशल रणनीति का परिचय दिया।


गीता को नहीं मिली सहानुभूति
गुंडलपेट में पिछली बार हुए उपचुनाव में अपने पति एचएस महादेव प्रसाद की मौत के बाद सहानुभूति वोटों के सहारे चुनाव जीतने वाली गीता महादेव प्रसाद, जो बाद में सिद्धरामय्या मंत्रिमंडल में गन्ना मंत्री बनी थीं, को इस बार भाजपा के सीएस निरंजन कुमार के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

माना जाता है कि इस बार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में गीता महादेव प्रसाद सफल नहीं रही और विधायक रहते हुए भी उन्होंने प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं किया था। वहीं भाजपा ने क्षेत्र में प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई और जमीनी स्तर पर बेहतर प्रबंधन की बदौलत भाजपा के प्रति मतदाताओं में भरोसा कायम करने में सफल रहे।

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