इसरो ने कहा है कि चंद्रयान-2 वर्ष 2019 के आरंभ में चंद्रमा का अध्ययन शुरू करेगा। चंद्रयान-2 के आर्बिटर में व्यापक श्रृंखला वाला स्पेक्ट्रोमीटर है जो 5 माइक्रोन तक की चीजों के स्पष्ट रूप से देख सकता है। इससे चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का स्पष्ट प्रमाण मिलेगा। इस प्रयोग से विश्व में पहली बार चंद्रमा की सतह पर पानी के वितरण के संबंध में दृढ़ निष्कर्ष निकलने की उम्मीद है। दोहरी आवृत्ति वाला सिंथेटिक अपर्चर राडार (एसएआर) इस अध्ययन को आगे बढ़ाएगा और चंद्रमा के उप-सतह में पानी की मौजूदगी के मिले प्रमाणों को और विश्वसनीयता के साथ पुष्ट करेगा। इसके अलावा मास स्पेक्ट्रोमीटर के जरिए चांद के बहिर्मंडल का लंबे समय तक अध्ययन किया जा सकेगा। इसरो ने कहा है कि चंद्रयान-2 वास्तव में चंंद्रमा पर पानी की मौजूदगी जैसे महत्वपूर्ण विषय पर ठोस निष्कर्ष देगा।
पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने चांद की धरती पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया और दस साल बाद फिर एक बार वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि चांद के धु्रवीय प्रदेशों में जमी हुई बर्फ के रूप में पानी मौजूद है। चंद्रयान-1 के उपकरण (पे-लोड) मून-मिनरोलॉजी-मैपर (एम-3) द्वारा की गई इस खोज ने चंद्रमा की ओर देखने का वैज्ञानिक नजरिया बदल दिया। इसरो ने कहा है कि चंद्रमा पर पानी की खोज के बाद सौरमंडल के व्यापक अन्वेषण में भी चांद अहम भूमिका सकता है। अगर अंतरिक्ष और सौर मंडल की व्यापाक खोज शुरू करते हैं तो चंद्रमा ईंधन, ऑक्सीजन या अन्य महत्वपूर्ण कच्चे माल के लिए आधार बन सकता है। कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि अगर पानी और संसाधनों के लिए चांद को अड्डा बनाएं तो अंतरिक्ष परिवहन काफी किफायती हो जाएगा। चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण 22 अक्टूबर 2008 को पीएसएलवी सी-11 से किया गया था।