हालांकि, खगोल वैज्ञानिक ग्रहण से जुड़ी भय और आशंकाओं को सिरे से खारिज कर आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा अपनाने पर जोर देते हैं। इसी संदर्भ को लेकर राजस्थान पत्रिका ने भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर और नेहरू तारामंडल मुंबई (वर्ली) के पूर्व निदेशक पीयूष पाण्डेय से विशेष चर्चा की। दोनों विशेषज्ञों ने आमजन के लिए संदेश दिया है कि भय और आशंकाएं त्याग दीजिए और यह विलक्षण चन्द्रग्रहण जरूर देखिए।
प्रो. रमेश कपूर ने कहा कि 27 जुलाई को चन्द्रमा पूर्ण ग्रहण के समय लालिमा लिए होगा वहीं उससे 7 डिग्री नीचे एक लाल रंग का सितारा भी चमक रहा होगा। यह मंगल ग्रह होगा, जो इन दिनों पृथ्वी के निकट है। इसी संदर्भ में पीयूष पांडे ने कहा कि ग्रहण हजारों साल से देखी जाने वाली एक आम घटना है।
अगर सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण को मिला दें तो हर साल कम से कम 5 ग्रहण और अधिक से अधिक 7 ग्रहण होते हैं। इस साल 5 ग्रहण हैं। उन्होंने कहा कि हमारा चंद्रमा तो एक ही है। कल्पना कीजिए अगर हम गुरुग्रह वासी होते तो वहां हर घण्टे कोई न कोई ग्रहण होता।
गुरु ग्रह के 70 से अधिक चंद्रमा है। वहां हर घंटे कोई न कोई पिंड किसी न किसी पिंड को ग्रहण लगा रहा होता है। जहां भी एक प्रकाश स्रोत होगा और दो ठोस वस्तुएं होंगी वहां ग्रहण होना स्वाभाविक बात है। इसलिए इस घटना को लेकर डरने की कतई आवश्यकता नहीं।
चंद्रग्रहण देखना पूरी तरह सुरक्षित
दोनों खगोलविदों प्रो. कपूर और पाण्डेय का कहना है कि ग्रहण का प्रभाव उसी तरह होता है जैसा धूप में आप एक छाता लेकर निकल जाएं। चंद्रग्रहण ग्रहण देखना पूरी तरह निरापद है। इसमें कोई भय नहीं है। क्योंकि चंद्रमा का प्रकाश और कम हो जाता है। जब पूर्ण चंद्र को पूरी तरह निहार सकते हैं तो ग्रहण ग्रस्त चंद्रमा की चमक लगभग 500 गुणा कम हो जाती है। उसे देखना पूरी तरह सुरक्षित है।
सूर्यग्रहण को लेकर थोड़ी सावधानी की जरूरत है। जब आकाश निर्मल हो तो सूर्य को कोई भी दो-तीन सेकेंड से ज्यादा देर तक नहीं देख सकता क्योंकि जब तीव्र रोशनी पड़ती है तो आंखों की पुतली छोटी हो जाती है। ग्रहण के समय चेतावनी इसलिए दी जाती है क्योंकि आंखें धोखे में पड़ जाती हैं। जब ग्रहण के दौरान सूर्य का आकार कटते-कटते एक बिस्किट जैसा रह जाता है तब आसपास का पूरा प्रकाश बहुत कम रह जाता है। ऐसे में आंखों की पुतली फैलने लगती है लेकिन जहां से सूर्य का प्रकाश आ रहा होता है वह उतना ही तीव्र या दैदीप्यमान होता है। इसलिए आंखों को नुकसान हो सकता है।
धरती पर कोई प्रभाव नहीं
प्रो. कपूर ने कहा कि यह संयोग है कि ग्रहण तभी होते हैं जब ज्वार-भाटा अपने चरम पर होता है। क्योंकि ग्रहण या तो अमावस्या या पूर्णिमा के दिन होते हैं और उसी दिन ज्वार भी आते हैं। इसमें सूर्य का थोड़ा योगदान हैं। ग्रहण के चलते ऐसा नहीं होता। न तो कोई सुनामी आएगी और न ही भूकंप। ज्वारभाटा जो पहले आते हैं वे आते रहेंगे।
पूर्ण ग्रहण के समय आप राजस्थान के जैसलमेर के रेगिस्तान में हों तो नजारा और खूबसूरत होगा। क्योंकि, पूर्णिमा के दौरान आसमान में मुश्किल से 20 तारे नजर आते हैं लेकिन जब पूर्ण चंद्रग्रहण होगा तो लाल रंग का चंद्रमा और उसके नीचे लाल रंग का मंगल ग्रह और चमकते सितारे होंगे। एक खूबसूरत आसमान देख सकेंगे।