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बैंगलोर

इसरो तकनीक से लगेगी खनन माफिया पर रोक

रेत और खनन के अवैध कारोबार की निगरानी के लिए उपकरण तैयार कर रहा इसरो ,-नाविक से होंगे बड़े सामाजिक एवं आर्थिक फायदे

बैंगलोरSep 11, 2018 / 07:40 pm

Rajeev Mishra

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बेंगलूरु. भारतीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (नाविक) का उपयोग कर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ऐसे उपकरणों एवं ऐप्स का विकास कर रहा है जिसके कई सामाजिक और आर्थिक फायदे हैं। इसमें अवैध खनन और रेत माफिया पर प्रभावी रोक लगाने सेे लेकर मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर चेतावनी प्रणाली स्थापित करने और मछुआरों की जान-माल की रक्षा से जुड़े उपकरण भी शामिल हैं।
इसरो अध्यक्ष के शिवन ने बताया कि नाविक डिवाइस से कुछ ऐसे उपकरण विकसित किए जा रहे हैं जिसका सामाजिक कार्यों मे बेहतर उपयोग हो सकेगा। नाविक श्रृंखला उपग्रहों का फायदा उठाने के लिए ऐसे उपकरणों व ऐप्स का विकास प्रगति पर है और उनका परीक्षण चल रहा है। इन्हीं में से एक ऐसा उपकरण है जिससे अवैध खनन पर नजर रखी जा सकेगी और अंतत: उस पर प्रभावी रोक लगाने में कामयाबी मिलेगी। इसरो द्वारा विकसित इन उपकरणों को उन वाहनों पर लगाया जा सकेगा जो कानूनी रूप से खनन कार्यों में जुड़े हैं। ऐसे वाहन जो रेत या लौह-अयस्क का परिवहन करते हैं। इस उपकरण और ऐप के जरिए अधिकारी उन वाहनों पर लगातार नजर रख सकेंगे जो खनिज संपदाओं का परिवहन करते हैं। इससे राज्य के अधिकारियों को खनन और रेत माफिया को खत्म करने में मदद मिलेगी।
दरअसल, इसरो ने यह परियोजना राज्यों के आग्रह पर शुरू की है। खासकर, रेत माफिया राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी थी जिसके चलते कई सरकारी अधिकारियों को जान से भी हाथ धोना पड़ा। राज्य सरकारें इस खतरे को खत्म करना चाहती हैं।
शिवन ने बताया कि राज्य परिवहन निगम की बसों की निगरानी के लिए भी नाविक आधारित एक उपकरण एवं ऐप विकसित किया जा रहा है। इस उपकरण को राज्य सरकार अपने निगम की बसों में फिट करेंगे जिससे बसों की गतिविधियों और उनकी आवाजाही की निगरानी की जा सकेगी। इसके अलावा भी नाविक आधारित कुछ अन्य उपकरण विकसित किए जा रहे हैं जिसका उपयोग अन्य कार्यों में हो सकेगा। ऐसे ही एक डिवाइस नेशनल पावर ग्रिड के लिए किया जा रहा है। इसे टाइमिंग रिसीवर का नाम दिया गया है इसके जरिए नेशनल पावर ग्रिड को समकालिक या तुल्यकालिक बनाया जा सकेगा। एक अन्य डिवाइस विकसित किया जा रहा है जिसका उपयोग वायुमंडल के गुण-दोषों के विवेचन में हो सकेगा। रेडियोसोंड नामक यह डिवाइस वायुमंडलीय गुणों का मापन करेगा।
उन्होंने बताया कि स्वदेशी जीपीएस नाविक के मोबाइल फोन तक पहुंचने में अब ज्यादा विलंब नहीं होगा। इसके लिए रिसीवर का विकास किया जा चुका है जिसका उद्योग बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन करेंगे। इसकी प्रक्रिया चल रही है। इसरो रिसीवर के साथ मोबाइल का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होने के साथ ही स्वदेशी जीपीएस लोगों के हाथ में होगा और वे भारतीय नेविगेशन प्रणाली का लाभ उठा सकेंगे। वहीं मानव रहित रेलवे क्रासिंग के लिए चेतावनी प्रणाली और मछुआरों के लिए चेतावनी प्रणाली का विकास किया जा चुका है। पायलट परियोजना के तहत रेलवे ने इस प्रणाली का परीक्षण कई रूटों और ट्रेनों पर किया है। वहीं, केरल और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में मछुआरे इसरो डिवाइस का उपयोग कर मौसम का अपडेट और फिशिंग जोन के बारे में जानकारी हासिल करने लगे हैं। यह डिवाइस उन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने से भी भी बचाएगी।
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