यह बात आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने राजाजीनगर के सलोत जैन आराधना भवन में अपने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के अनुसार व्यक्ति को मातम से दूर नहीं भागना चाहिए बल्कि इसके साथ कार्य करना चाहिए। इसका भेद खोलना चाहिए, इसका मुकाबला करना चाहिए और इसे बदलने का रास्ता ढूंढना चाहिए।
हमें अपने अंदर के गुणों को बचाकर रखने की जरूरत है। अपनी ताजगी, मुस्कराहट, आनंद और संवेदनशीलता इन सबको बचाकर रखना है। जब हम आनंद में रहते हैं, तभी दूसरों को आनंदित रखने की कोशिश करते हैं। हमें आत्मा यानी स्वयं को जानने की कोशिश करते हुए जीने का तरीका सीखना चाहिए।