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बैंगलोर

जो हमारे साथ, चुनाव में उसका समर्थन

लिंगायत मठ प्रमुख बोले, विश्व लिंगायत परिषद की बैठक

बैंगलोरApr 08, 2018 / 12:57 am

कुमार जीवेन्द्र झा

kingayat seer
बेंगलूरु. अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धरामय्या सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का जो दांव खेला था अब उसका राजनीतिक असर दिखने लगा है। शनिवार को लिंगायत समुदाय की पहली महिला मठ प्रमुख सहित 30 मठ प्रमुखों ने कहा कि वे विधानसभा चुनाव में उसी का समर्थन करेंगे, जो इस मसले पर उनका साथ देंगे। हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यक के दर्जे के मसले पर अभी केंद्र सरकार को फैसला लेना है।
शनिवार को बसव केंद्र में विश्व लिंगायत परिषद के बैनर तले लिंगायत समुदाय के मठ प्रमुखों की बैठक हुई। इसके बाद बसव पीठ की प्रमुख माते महादेवी ने कहा कि संगठन लिंगायत समुदाय को अलग धर्म और धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाने के लिए सिद्धरामय्या सरकार के प्रयासों से संतुष्ट है और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सिद्धरामय्या का समर्थन करने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि इस मांगों को लेकर लिंगायत समुदाय ७० सालों से संघर्ष कर रहा है लिहाजा सिद्धरामय्या पर लिंगायतों को बांटने का आरोप लगाना अनुचित है।
माते महादेवी ने कहा कि जैन, बौद्ध और सिखों को अलग धर्म का दर्जा मिल गया लेकिन ९०० पुराने हमारे समुदाय को अलग धर्म के तौर पर मान्यता नहीं मिली है। सिद्धरामय्या के कारण ही हमें पहचान मिली है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग सिद्धरामय्या पर चुनाव के लिए लिंगायतों की भावना का इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन हमने १० महीने पहले मुख्यमंत्री से ऐसी मांग की थी तब चुनाव नहीं था। हमने मुख्यमंत्री को बताया था कि लिंगायत और वीरशैव अलग-अलग हैं। हम समानांतर हैं, एक नहीं। इसके बाद सरकार ने विशेषज्ञ समिति बनाई और उसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र से सिफारिश की।
माते महादेवी ने कहा कि हम उसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन करेंगे जो अलग धर्म और धार्मिक अल्पसंख्यक की मांग पर हमारे साथ होगा। कांग्रेस और सिद्धरामय्या ने हमारा साथ दिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्होंने हमें बड़ा तोहफा दिया है। उन्होंने कहा कि अब प्रधानमंत्री मोदी को राज्य सरकार की सिफारिश पर फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि संत बसवेश्वर की जयंती पर मोदी को लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का तोहफा देना चाहिए। एक अन्य मठ प्रमुख मुरुघा राजेंद्र स्वामी ने कहा कि हम उनका समर्थन करेंगे, जिन्होंने हमारा समर्थन किया। यह पूछे जाने पर क्या कि इसका मतलब कांग्रेस का समर्थन करना है,उन्होंने कहा कि आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं।
शाह और संघ के खिलाफ नाराजगी
बैठक में मठ प्रमुखों ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ भी नाराजगी जताई। परिषद की बैठक में शाह के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किया गया। माते महादेवी ने कहा कि संघ लोगों को भ्रमित कर रहा है कि हम देश विरोधी ताकतों से धन लेकर अलग धर्म की मांग कर रहे हैं। वे लोग हम पर देश और हिंदू धर्म को तोडऩे की कोशिश का आरोप लगा रहे हैं। जब जैन, सिख और बौद्ध अलग धर्म के बावजूद हिंदू हैं तो हमें हमारी मांग को हिंदू विरोधी कहना अतार्किक है। हम भी हिंदुत्व का हिस्सा हैं लेकिन हमारा धर्म लिंगायत है। उन्होंने कहा कि शाह ने वीरशैव समुदाय मठ के प्रमुखों के साथ बैठक में लिंगायत को अलग धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देने का वादा कर हमारे साथ विश्वासघात किया है। किसी संवैधानिक पद पर नहीं होने के कारण शाह को ऐसा वादा करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की सिफारिश को ठुकराया को परिषद इसे अदालत में चुनौती देगी।
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राजनीतिक असर
हाल के वर्षों में यह पहला मौका है जब मठ प्रमुख किसी पार्टी के पक्ष में खुलकर समर्थन में आए हैं। इसका अगले चुनाव पर काफी असर पड़ सकता है। लिंगायतों की आबादी करीब १७ फीसदी है और ये १०० विधानसभा क्षेत्रों में प्रभावी स्थिति में हैं। इस समुदाय को भाजपा का समर्थक माना जाता रहा है। भाजपा ने लिंगायत समुदाय से होने के कारण ही पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येड्डियूरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है।

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