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बैंगलोर

अन्यों के लिए समस्या नहीं समाधान का कारण बने-देवेंद्रसागर

धर्मसभा

बैंगलोरOct 21, 2019 / 08:20 pm

Yogesh Sharma

अन्यों के लिए समस्या नहीं समाधान का कारण बने-देवेंद्रसागर

अन्यों के लिए समस्या नहीं समाधान का कारण बने-देवेंद्रसागर

बेंगलूरु. अक्कीपेट जैन संघ में जारी चातुर्मासिक प्रवचन में आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि समूह और समुदाय में शांति रहे, सौहार्द रहे, आपसी मेल-मिलाप रहे यह जरूरी है। लेकिन समाज में अशांति ज्यादा है, तनाव ज्यादा है, संघर्ष ज्यादा है। दो होकर रहना संघर्ष में जीना है और यह आधुनिक समय की बड़ी समस्या है। इसके कारणों की खोज लगातार होती रही है। रुचि का भेद, विचार का भेद, चिंतन का भेद और क्रिया का भेद स्वाभाविक है। लेकिन जब इस तरह का भेद मनभेद बन जाता है तो संघर्ष, तनाव, अशांति घटित होती है। कहा जाता है कि कोई और नहीं, हम खुद ही अपने सबसे पहले दुश्मन होते हैं। हमारी समस्याएं, दूसरों की वजह से कम, हमारे अपने कारणों से ज्यादा खड़ी होती हैं। अब सवाल यह है कि हम अपने लिए समस्या से समाधान कैसे बन सकते हैं? आचार्य आगे बोले की आप अपने साथ उतने ही उदार और सहयोगी बनें, वैसा ही व्यवहार करें, जैसा अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ करना पसंद करते हैं।Ó ऐसा करके ही हम जीवन को समस्या नहीं, समाधान बना सकते हैं। समाज में रहते हुए भी शांतिपूर्ण जीवन जिया जा सकता है। इसके लिए अहिंसा का प्रयोग कारगर है। यदि अहिंसा का प्रयोग नहीं होता तो समाज नहीं बनता। दो व्यक्ति समाज में एक साथ न रह पाते। समाज बना अहिंसा के आधार पर। उसका सूत्र है- साथ-साथ रहो, तुम भी रहो और मैं भी रहूं। ‘तुमÓ या ‘मैंÓ अलग हो जाए तो यह हिंसा का विकल्प है। ‘हम दोनों साथ नहीं रह सकतेÓ यह हिंसा का प्रयोग है।
उन्होंने कहा कि जिंदगी में चलना और रुकना दोनों जरूरी है। कब चलना है और कब रुकना, यह जानते-समझते हुए कदम बढ़ाते रहना हमें थकने नहीं देता। यह हमारी यात्रा को सार्थक एवं सुखद कर देता है। एक दूसरे की कमजोरी और असमर्थता को सहन करना, अल्पज्ञता और मानसिक अवस्था को सहन करना, दूसरे की कठिनाई और बीमारी को सहन करना शांति के लिए आवश्यक है। जब व्यक्ति इन सबको सहन करता है और समर्पण का अभ्यास करता है तभी परिवार, समाज एवं समुदाय में शांति रह सकती है। भगवान महावीर ने अहिंसा और अनेकांत का सूत्र दिया। अनेकांत का पहला प्रयोग है सामंजस्य बिठाना। दो विरोधी विचारों में सामंजस्य, दो विरोधी परिस्थितियों में सामंजस्य। यदि सामंजस्य न हो तो छोटी बात भी लड़ाई का कारण बन जाती है। बिना कारण लड़ाइयां चलती रहती हैं। यह इसलिए चलती हैं कि लोग सामंजस्य बिठाना नहीं जानते, समझौता करना नहीं जानते, व्यवस्था को नहीं जानते। अगर सामंजस्य, समर्पण, समझौता और व्यवस्था पर हम ध्यान दें तो लड़ाइयां बंद हो जाएंगी। आज सहिष्णुता का अर्थ गलत समझ लिया गया है। सहिष्णुता का अर्थ न कायरता है, न कमजोरी और न ही दब्बूपन। सहिष्णुता महान शक्ति है। बहुत शक्तिशाली आदमी ही सहिष्णु हो सकता है और सहिष्णुता से ही शांति स्थापित हो सकती है।

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