इस पर भगवान महावीर ने कहा कि क्या केवल इंद्रियों, वाणी, मन और शरीर के द्वारा भोग करना ही सुख है? आत्मा के दर्शन करने के पश्चात जो अनुभूति होती है उसे सुख कहते हैं। आचार्य ने एक कथानक के माध्यम से कहा कि जिन्होंने मोक्ष को प्राप्त नहीं किया उन्हें इंद्रिय जनित भोग प्रिय होते हैं। सामान्य आदमी शारीरिक सुखों को ही सब कुछ मानता है परंतु आत्मा का दर्शन करना सबसे बड़ी बात होती है। आचार्य ने कहा कि साधु चाहे कहीं भी रहे उसे दिन में एक बार प्रवचन अवश्य देना चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी अवसर पर अपने प्रवचन के दूसरे चरण महात्मा महाप्रज्ञ ग्रंथ पर कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ संस्कृत के प्रकांड पंडित थे और विक्रम संवत 2003 में उनकी कविताओं और लेख को वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन में प्रथम स्थान मिला था। प्रवचन के पश्चात कन्वेंशन हॉल में अणुव्रत गीत गायन प्रतियोगिता का आयोजन भी हुआ जिसमें 21 राज्यों से समागत प्रतिभागियों ने प्रस्तुति दी। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।
आचार्य महाश्रमण ने अणुव्रत गीत गायन प्रतियोगिता में शामिल विद्याथिर्यों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि यदि विद्यार्थी अणुव्रत जीवन विज्ञान के प्रयोग करें तो उनका चरित्र निर्माण अवश्य होगा। मुनि योगेश कुमार ने विद्यार्थियों को प्रेरणा दी। अखिल भारतीय न्यास के प्रबंध न्यासी सम्पतमल नाहटा, राष्ट्रीय संयोजक विजयवर्धन डागा सहित सभी प्रदेशों के संयोजक व सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित हुए।