सरकारी और अनुदानित स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के चक्कर में शिक्षा विभाग ने नियमों में बदलाव कर परिपत्र जारी किया था कि घर के आसपास सरकारी या निजी अनुदानित स्कूलों में सीट नहीं होने की स्थिति में ही गैर अनुदानित निजी स्कूलों में दाखिला लेने की अनुमति होगी। जिसके बाद अवेदकों की संख्या चिंताजनक रूप से घट गई। क्योंकि अभिभावक सरकारी या अनुदानित स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं, उनकी पहली पसंद है गैर अनुदानित निजी स्कूल।
आरटीइ कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति के लिए प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। इनका मानना है कि आरटीइ अधिनियम के तहत अभिभावकों को अपने बच्चों को गैर अनुदानित निजी स्कूलों में पढ़ाने का अधिकार
मिला था।
बच्चों को जब इस अधिकार से वंचित ही करना था तो आरटीइ अधिनियम की जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि सरकारी स्कूलों में दाखिला पहले से ही सुलभ है। इसके लिए किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है।