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बैंगलोर

सवाल बच्चों की शिक्षा का है : फिर कर्नाटक में आरटीई का लाभ क्यों नहीं लेना चाहते अभिभावक

आधी सीटें खाली: 7636 में से 3300 बच्चों ने लिया दाखिला, दूसरे चरण की लॉटरी 25 को

बैंगलोरMay 17, 2019 / 06:37 pm

Priyadarshan Sharma

RTE

सवाल बच्चों की शिक्षा का है : फिर कर्नाटक में आरटीई का लाभ क्यों नहीं लेना चाहते अभिभावक

बेंगलूरु. शिक्षा का अधिकार (आरटीइ) अधिनियम के तहत लॉटरी के आधार पर चयनित बच्चों के करीब आधे ही अभिभावकों ने बच्चों का दाखिला करवाया है।

पहले चरण के दाखिले के लिए लोक शिक्षण विभाग (डीपीआइ) ने छह मई को लॉटरी निकाल 7636 बच्चों को चुना था, लेकिन इनमें से 3300 बच्चों के अभिभावकों ने ही अपने बच्चों का दाखिला करवाया है। शेष सीटें रिक्त हैं। डीपीआइ के अनुसार 25 मई को दूसरी और अंतिम लॉटरी निकलेगी। डीपीआइ के आयुक्त एमटी रेजू ने बताया कि गत वर्ष 2.38 लाख आवेदन मिले थे, सत्र 2019-20० के लिए करीब 17७ हजार आवेदन ही मिले हैं। शिक्षा विशेषज्ञ गैर अनुदानित निजी स्कूलों में प्रवेश संबंधित नियमों में बदलाव इसका बड़ा कारण मानते हैं।
सरकारी और अनुदानित स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के चक्कर में शिक्षा विभाग ने नियमों में बदलाव कर परिपत्र जारी किया था कि घर के आसपास सरकारी या निजी अनुदानित स्कूलों में सीट नहीं होने की स्थिति में ही गैर अनुदानित निजी स्कूलों में दाखिला लेने की अनुमति होगी। जिसके बाद अवेदकों की संख्या चिंताजनक रूप से घट गई। क्योंकि अभिभावक सरकारी या अनुदानित स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं, उनकी पहली पसंद है गैर अनुदानित निजी स्कूल।
आरटीइ कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति के लिए प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। इनका मानना है कि आरटीइ अधिनियम के तहत अभिभावकों को अपने बच्चों को गैर अनुदानित निजी स्कूलों में पढ़ाने का अधिकार
मिला था।
बच्चों को जब इस अधिकार से वंचित ही करना था तो आरटीइ अधिनियम की जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि सरकारी स्कूलों में दाखिला पहले से ही सुलभ है। इसके लिए किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है।

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