दुनिया रेन बसेरा है, क्यों करता तेरा मेरा है-ज्ञानमुनि
दुनिया रेन बसेरा है, क्यों करता तेरा मेरा है-ज्ञानमुनि
बेंगलूरु अक्कीपेट स्थित वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ स्थानक भवन में चातुर्मास प्रवचन में पण्डितरत्न ज्ञानमुनि ने कहा कि पाप करने से डरो। हम जो कुछ भी करते हैं उसे परमात्मा तो देखता ही है। हमारी आत्मा भी उसे जान रही है। हमारी हर क्रिया आत्मा की जानकारी में अंकित हो रही है। मारवाड़ी में कहावत है पाप छिपाया ना छिपे, छिपे न मोटा भाग, दाबी दूबी ना रहे, रुई लपेटी आग। जिस प्रकार से जलती अग्नि को छुपाया नहीं जा सकता है। उसी प्रकार पाप भी छिप नहीं सकता है। दुनिया में चार तरह की भावना वाले होते हैं। एक होती है दानवी भावना जिसमें व्यक्ति का चिंतन होता है। मेरा सो मेरा, तेरा भी मेरा। इसमें व्यक्ति लड़ झगड़कर, छीना झपटी, लूटमारकर भी दूसरों की वस्तु पर अधिकार जमा लेता है। दूसरी होती है मानवी भावना जिसमें व्यक्ति का चिंतन होता है तेरा सो तेरा, मेरा सो मेरा। उसमे व्यक्ति अपने हाल में रहता है, किसी को तकलीफ नहीं देता है। तीसरी होती है देवी भावना जिसमें व्यक्ति का चिंतन होता है कि तेरा सो तेरा, मेरा भी तेरा। इसमें व्यक्ति स्वयं कष्ट देखकर भी दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता है। और चौथी भावना होती है भगवत भावना जिसमें चिंतन होता है कि न तेरा है, न मेरा है, दुनिया रेन बसेरा है, क्यों करता तेरा मेरा है। इसमें व्यक्ति स्वयं भी संसार की नश्वरता को समझकर लोभ लालच कामनाओं से दूर रहता है और दूसरों को भी संसार के मोह माया जाल से बचाने की कोशिश करता है। स्वयं भी संसार से तिरता है और जगत के जीवों को संसार से तिरने में सहायक बनता है। हमें देवी और भगवत भावना वाला बनना है। इतना नहीं हो सके तो कम से कम मानव भावना वाले तो अवश्य बनें। लेकिन कभी भी दानव भावना वाले नहीं बने। प्रारम्भ में लोकेशमुनि ने भी प्रेरक उद्बोधन दिया। साध्वी पुनीतज्योति की मंगल उपस्थिति रहीं।