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बैंगलोर

टैंकर की मदद से बुझा रहे वन्य जीवों की प्यास

हावेरी जिले के राणेबेन्नूर के कृष्णमृग अभयारण्य में पानी के सभी स्रोत सूख जाने से अभयारण्य में बिना आहार-पानी के वन्य जीव भटकते नजर आ रहे हैं। ऐसे में टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है।

बैंगलोरApr 23, 2019 / 01:30 am

शंकर शर्मा

टैंकर की मदद से बुझा रहे वन्य जीवों की प्यास

टैंकर की मदद से बुझा रहे वन्य जीवों की प्यास

हुब्बल्ली. हावेरी जिले के राणेबेन्नूर के कृष्णमृग अभयारण्य में पानी के सभी स्रोत सूख जाने से अभयारण्य में बिना आहार-पानी के वन्य जीव भटकते नजर आ रहे हैं। ऐसे में टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है। यह अभयारण्य कुल 11 हजार 950 हेक्टेयर कार्यक्षेत्र पर फैला है।

सितम्बर 2015 की रिपोर्ट के अनुसार 7100 से अधिक कृष्णमृग, हरिण, जंगली सुअर, लोमड़ी, सियार, भेडिय़ा, खच्चर तथा सैकड़ों प्रकार के पक्षी अभयारण्य में आश्रय प्राप्त किया है। आए दिन तेंदुए नजर आते हैं। फिलहाल तपती गर्मी से अभयारण्य स्थित तालाब, झरने, खेळियां सूख गए हैं। इस के चलते सतर्कता बरतते हुए वन अधिकारियों ने प्राणियों को नियमित पानी उपलब्ध करने की दिशा में कृष्णमृग अभयारण्य समेत आसपास के इलाके में पूर्व में 32 तथा मौजूदा वर्ष 12 समेत कुल 42 पानी खेळियों का निर्माण किया है। इनमें टैकरों के जरिए पानी आपूर्ति कर प्राणियों की प्यास बुझाने के फैसला लिया है।


अभयारण्य में वन्यजीवों के लिए आहार आपूर्ति करने वाले पेड़-पौधे नहीं लगाए गए हैं। पचास फीसदी से अधिक इलाके में अकेशिया, नीलगिरी पेड़ उगाए गए हैं। इसके अलावा कांटेदार पेड़ उगने से प्राणियों को आहार की कमी पेश आई है। वन में आहार नहीं मिलने के कारण प्राणी किसानों की खेतों की ओर रुख किया है।

सीमांत वन क्षेत्र की जमीनों के किसानों का आरोप है कि बारिश में घास के बीज बोकर वन विभाग ने पल्ला झाड़ लिया है। गर्मियों के दिनों में तो कृष्णमृगों के लिए हरियाली नजर आना मुश्किल है। इसके चलते वे आसपास की जमीनों पर घुस कर फसलों को खा रहे हैं। कृष्णमृग तथा हरिणों को तलाशते हुए आने वाले तेंदुए मवेशियों, श्वानों पर हमला कर
रहे हैं।

&कृष्णमृग अभयारण्य में प्राणियों के लिए पूरक कोई माहौल नहीं है। वहां हरियाली नजर ही नहीं आ रही है। प्राणियों को चारा नहीं मिल रहा है। इसके चलते प्राणी किसानों की जमीन की ओर रुख कर रहे हैं। इस बारे में वन विभाग को उचित कार्रवाई करनी चाहिए। दिल्लेप्पा कम्बली, स्थानीय किसान

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