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बैंगलोर

वीरशैव-लिंगायत समुदाय दो फाड़

प्रदेश की राजनीति में गहरा प्रभाव डालने वाला वीरशैव- लिंगायत समुदाय अब दो भागों में विभाजित हो गया है। अखिल भारतीय वीरशैव महासभा के वीरशैव

बैंगलोरAug 11, 2017 / 11:20 pm

शंकर शर्मा

Veershive - Lingayat community

Veershive – Lingayat community

बेंगलूरु. प्रदेश की राजनीति में गहरा प्रभाव डालने वाला वीरशैव- लिंगायत समुदाय अब दो भागों में विभाजित हो गया है। अखिल भारतीय वीरशैव महासभा के वीरशैव व लिंगायत दोनों को एक बताने संबंधी दावे के विरुद्ध अब अखिल भारतीय विश्व लिंगायत धर्म महासभा अस्तित्व में आ गई है। वीरशैव समाज के इस विभाजन का प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर पड़ेगा।


इस समाज के प्रभावी राजनेता माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येड्डियूरप्पा सहित कुछ प्रभावी नेताओं ने हालांकि इस मसले पर तटस्थ रुख अपना रखा है। लेकिन तुंगभद्रा नदी के ऊपरी हिस्से के प्रबल राजनेताओं व मठ प्रमुखों ने लिंगायत धर्म महासभा के प्रति समर्थन व्यक्त किया है। वहीं तुंगभद्रा नदी के निचले हिस्से के समाज के लोग पहले की तरह वीरशैव महासभा में ही कायम हैं। गुरुवार को शहर के ज्ञान ज्योति सभागार में में लिंगायत पृथक धर्म के मसले पर बुलाई गई कुछ मठ प्रमुखों, राजनीतिज्ञों, समाज के गणमान्यजन व जन प्रतिनिधियों की बैठक में समाज के विभाजन की नींव रख दी गई।


बैठक में सिद्धरामय्या के मंत्रिमंडल के लिंगायत समुदाय के अधिकतर मंत्रियों, विधायकों व प्रमुखों ने भाग लिया। लेकिन इस बैठक में विरक्त मठ से जुड़े लोगों का ही बाहुल्य रहा। खास बात यह रही कि राज्य में अपना भारी प्रभाव रखने वाले तुमकूरु के सिद्धगंगा, मैसूरु के जेएसएस मठ ने इस बैठक को समर्थन नहीं दिया।


बैठक में भाग लेने वाले मठ प्रमुखों व अन्य लोगों ने लिंगायत धर्म को स्वीकार नहीं करने वाले मठ प्रमुखों से गद्दी छोडऩे को कहा और समाज की भलाई के लिए उनके संघर्ष को समर्थन देने और किसी भी हाल में रास्ते से भटकाने की कोशिश नहीं करने की अपील की। उन्होंने कहा कि लिंगायत धर्म की स्थापना करके अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त करके रोजगार व अन्य क्षेत्रों में समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ दिलाना ही हमारा मकसद है। इसके लिए हमने महासभा से अलग होकर पृथक धर्म की स्थापना करने का बीड़ा उठाया है।


बैठक में लिंगायत धर्म को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करने का मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या से अपील करने का भी निर्णय किया गया। राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में केन्द्र सरकार से सिफारिश करने के बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा केन्द्रीय गृहमंत्री से भेंट कर लिंगायत धर्म को अलग धर्म का दर्जा देने की अपील करने का निर्णय किया गया।


बैठक में लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने तक संघर्ष जारी रखने का सर्वसम्मति से निर्णय किया गया। बैठक में कहा गया कि बसवण्णा व अन्य शरणों द्वारा स्थापित लिंगायत धर्म का वीरशैव समुदाय के साथ कोई सरोकार नहीं है। दोनों के आचरण व सिद्धांतों में भारी अंतर है। लिहाजा इन दोनों समुदायों को एक कहना संभव नहीं है। वीरशैवों को अब से आगे लिंगायत धर्म के सिद्धांतों व वचनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।


बैठक में मंत्री एमबी पाटिल, शरण प्रकाश पाटिल, विनय कुलकर्णी, सांसद प्रकाश हुक्केरी, विधान परिषद सदस्य व जनता दल(ध) के नेता बसवराज होरट्टी, विधायक बी.आर. पाटिल, वीरण्णा मत्तिकट्टी, लिंगायत युवा वेदिके के वीरुपाक्षप्पा, विचारक रमजान दरगा, बेलिमठ के प्रमुख शिवरुद्र स्वामी, बेलगावी के नागनूर मठ के डा. सिद्धराज स्वामी,सिद्धगंगा मठ के सिद्धलिंग स्वामी, बाल्की हिरेमठ के डा. बसवलिंगा पट्टदेवरु, मुरुघा मठ के मल्लिकार्जुन महास्वामी, जयबसव मृत्युंजय स्वामी, चित्तरगी मठ के महंतप्पा स्वामी, चित्रदुर्गा ब्रह्मन मठ के डा. शिवमूर्ति मुरुघा शरणरु, गदग के तौंटदार्या मठ के डा. सिद्धलिंग महास्वामी सहित अन्य ने भाग लिया।


इससे पहले चामराजनगर में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार ने अलग धर्म के मसले पर अपने स्तर पर कोई रुख तय नहीं किया है। उन्होंने इस बात से इनकार किया इस मांग के पीछे सरकार का हाथ है। उन्होंने कहा कि समुदाय के एक खेमा इसके पक्ष में है जबकि दूसरा खेमा विरोध कर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ही किसी नजीते पर पहुंचेगी।

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