हाल ही में स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक पवन अरोड़ा की ओर से जिला कलक्टर को एक पत्र भेजा है। इसमें उल्लेख है कि प्रशासन की ओर से जून 2018 में भेजे पत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री की ओर से उक्त कार्य की डीपीआर बनाने के लिए एक करोड़ रुपए की घोषणा की जानकारी दी गई है, जबकि अगस्त 2018 में भेजे पत्र में डीपीआर बनाने के लिए पांच लाख रुपए स्वीकृत करने के लिए लिखा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2003 से 08 के कार्यकाल के दौरान बांसवाड़ा को सुन्दर बनाने तत्कालीन मुख्यमंत्री राजे ने सात करोड़ रुपए की राशि की लागत की कागदी सौन्दर्यीकरण योजना स्वीकृत की थी। योजना के तहत कार्यकारी एजेंसी माही परियोजना ने चिह्नित 17 कार्य भी पूरे किए। इन कार्र्यों का नगर परिषद को हस्तान्तरण भी कर दिया, लेकिन 2008 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद योजना के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों ने आंखें फेर ली। 2013 में फिर से भाजपा शासन में आई और 2018 में सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में कागदी नाले का सौन्दर्यीकरण द्रव्यवती नदी की तर्ज पर करने की घोषणा की।
योजना के तहत पाला स्थित बाल उद्यान, गेटेड एनिकट, कागदी नाले के दोनों ओर ऊंची रेलिंग, व्यू प्वाइंट, जेटी, उद्घाटन स्थल, नियंत्रण कक्ष आदि कार्य किए गए। कागदी नाले के दोनों ओर बनी सीवर लाइन, पाला उद्यान, व्यू प्वाइंट तथा रेलिंग के रखरखाव का जिम्मा भी नगर परिषद को सौंपा। 3620 मीटर लंबी सीवर लाइन में 66 चेम्बर हैं। योजना के तहत हुए कार्र्यों का जिम्मा परिषद को सौंपा, लेकिन इसके बदले स्वरूप को यथावत रखने की कोशिश नहीं की गई। आज भी जवाहर पुल के समीप बनाए एनिकट में मिट्टी और कचरे के ढेर लगे हैं। कागदी नाले में गंदा पानी जमा है। जलकुंभी का जाल बिछा है। करोड़ों की राशि व्यय करने के बाद सौन्दर्यीकरण तो नहीं हुआ, कागदी नाला शहर के लिए एक ‘दाग’ जरूर बन गया है।
पत्र में निदेशक ने वित्त विभाग की ओर से भेजी गई टिप्पणी का भी उल्लेख किया है। इसमें वित्त विभाग ने कहा है कि डीपीआर बनाने के लिए एक करोड़ रुपए की घोषणा होना बताया है। इस पूरे कार्य पर प्रारंभिक तौर पर सौ करोड़ रुपए खर्च होने बताए जा रहे हैं। फिलहाल डीपीआर बनाने के लिए पांच लाख रुपए की राशि चाही है, लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि डीपीआर की शेष 95 लाख रुपए और कागदी नाले के सौन्दर्यीकरण व विकास पर खर्च होने वाली सौ करोड़ रुपए की राशि कहां से उपलब्ध कराई जाएगी।
योजना के क्रियान्वयन को लेकर वित्त विभाग ने राशि की उपलब्धता को लेकर पूछा है। स्थानीय निकाय की स्थिति भी सौ करोड़ रुपए खर्च कर सकने जैसी नहीं है। सरकार की ओर से राशि मिलने पर भी कार्य हो पाएगा।
आशीष गुप्ता, जिला कलक्टर, बांसवाड़ा