सन 1947 में दोनों देशों के बीच खींची गई दीवार रिश्तों को नहीं रोक सकी है। बिहारीपुर के रहने वाले ईंट भट्टा कारोबरी वसीम इम्तियाज के मामू बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने रिश्ते की डोर कमजोर नहीं पड़ने दी। दो साल पहले वसीम का परिवार लाहौर गया तो वहां उन्होंने मामू अख्तर हुसैन की पोती हफ्जा को देखा तो वो उन्हें पसंद आ गई। उन्होंने बेटे मोहम्मद अलीशान वसीम के लिए उसका हाथ मांगा। इस पर हफ्जा के पिता इलेक्ट्रॉनिक व्यवसायी सुहेल अख्तर खुशी से राजी हो गए। भारत लौटते लौटते यह रिश्ता पक्का हो चुका था। हफ्जा उस वक्त सोलह साल की थीं। उनके बालिग होते ही शादी की तारीख तय हो गई।
इस महीने छह दिसंबर को 32 बाराती लाहौर गए। दूल्हा अलीशान के चाचा आसिम बताते हैं कि बाघा बार्डर पर दोनों मुल्कों की फौज की मौजूदगी में दोनों परिवारों ने एक दूसरे का बेहद गर्मजोशी से खैरमकदम किया। नौ दिसंबर को लाहौर में एक फार्म हाउस में मुस्लिम रीति-रिवाज से 24 साल के अलीशान का 18 साल की हफ्जा से निकाह हो गया।
अलीशान ने बरेली कॉलेज से बीकॉम किया है। जबकि हफ्जा ने इंटरमीडिएट किया है। अलीशान डीडीपुरम् में जिम चलाते हैं तो दो दिन पहले बरेली पहुंचीं हफ्जा घर के माहौल और रस्मों को समझने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें यहां का खाना लाहौर से अलग टेस्ट का लगा। हफ़्जा ने बताया कि उन्हें यहां के लोग बहुत अच्छे लगे।
रस्म के मुताबिक दुल्हन हफ्जा के साथ डोलचढ़िन बनकर उनकी नानी कनीज फातिमा आई हैं। उन्होंने कहा कि बरेली उन्हें लाहौर जैसा ही लगा। वह यहां के लोगों के व्यवहार से गदगद हैं। उन्होंने कहा कि यहां के लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया।
आलीशान के परिवार वाले अब बलीमे की तैयारी कर रहे है। बलीमे में पाकिस्तान में रहने वाले हफ़्जा के परिजन भी शामिल होना चाहते हैं। जिनको अभी वीजा नही मिल पाया है। आलीशान के परिजनों ने केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार से हफ़्जा के परिवार के 17 लोगों का भारत आने के लिए वीजा बनवाने की मांग की है।