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बाड़मेर

video : आज भी तालाब-नाडी पर जिंदा है रेगिस्तान

अमृतम्-जलम्

बाड़मेरMay 17, 2019 / 11:34 am

Moola Ram

Even today desert on pond and Nadi is alive

Even today desert on pond and Nadi is alive

बल्र्ब- पानी की कीमत रेगिस्तान से पूछिए। बूंद-बूंद पानी को यहां लोग तरसे है। घी गिरने की चिंता नहीं है लेकिन पानी का घड़ा उलटना यहां बड़ी बात माना गया। रेत के धोरों में यहां जहां दस में से सात अकाल की पीड़ा लोग सदियों से भोगते रहे है वहां 300 फीट गहरे कुएं राजा सागर के जमाने में खोदकर भी लोगों ने पानी का प्रबंध किया है। इस रेगिस्तानम में पानी कल भी बड़ी समस्या था और आज भी।
सरकारी पानी की पाइप लाइनें कई गांवों तक नहीं पहुंची है। ट्युबवेल और जीएलआर सूखे पड़े है। पंजाब के हरीके बांध से जब इंदिरा गांधी नहर चली थी तब नहरी पानी बाड़मेर पुहंचने का सपना दिखाया गया लेकिन अभी योजनाएं अधूरी है। एेसे में यहां पानी का प्रबंध भी पारंपरिक जल स्त्रोतों से संभव हुआ है।
ये जल स्त्रोत जरूरतमंद लोगों के भागीरथी प्रयास का नतीजा है। आज इनको संरिक्षत और सुरिक्षत करने की दरकार है। पत्रिका का अभियान अमृतम्-जलम् यही संदेश देता रहा है कि गांव-गांव के नाडी-तालाब की हर साल बारिश से पहले सुध ली जाए। उन पर श्रमदान हों और सामाजिक ताने-बाने से इन जल स्त्रोतों को संरक्षित करने की सुध समाज ले। बाड़मेर के पारंपरिक जल स्त्रोतों पर विशेष रिपोर्ट-
फेक्ट फाइल

– 489 ग्राम पंचायतें है जिले में

– 480 आदर्श तालाब

– 2500 नाडी तालाबों में भरता है पानी

– 30 लाख से पार पहुंच चुकी है जिले की आबादी
– 55 लाख पशुधन के लिए बड़ा सहारा है तालाब

– 03 महीने की बारिश में 06 से 09 मास तक भरे रहते है तालाब

बाड़मेर शहर.
यहां वैणासर, सोननाडी, कारेली और जसदेर तीन बड़े तालाब है। वैणासर, सोननाडी पहाड़ों की गोद में है। पहाड़ी पानी यहां बहकर इन तालाबों को लबालब करता है। इसके बाद वाटर हार्वेस्टिंग का अनूठा उदाहरण है कि वैणासर की गोद में बने कुएं इससे रिचार्ज होते और इन कुओं से भी सालभर तक पानी नहीं रीत रहा था।
कारेली का हुआ उद्धार

कारेली नाडी को कचरा पात्र बना दिया गया था। श्मशानघाट के पास के इस तालाब में 35000 टन कचरा जमा था। पत्रिका ने कारेली का हों उद्धार शीर्षक से समाचार अभियान चलाया और इसकी प्रेरणा से एक ही दिन में इस तालाब से 35000 टन कचरा उठाकर तालाब को पुनर्जीवित कर लिया गया है।
जसदेर से लीजिए सीख

शहर का जसदेर तालाब प्रदेशभर में तालाब संरक्षण का एक उदाहरण बन सकता है। इस तालाब महंत मोहनपुरी की कुटिया बनी और फिर जन सहयोग से विकास प्रारंभ हुआ। देखते ही देखते यह तालाब तीर्थ बन गया। अब यहां हजारों पेड़, मंदिर तो है ही पूर्णतया संरक्षित और सुरक्षित है। पानी भराव को लेकर आगोर ठीक करते हुए और भी कार्य हों तो यह शहर का सबसे खूबसूरत तालाब है।
जिले के मुख्य तालाब

रामसर- सोनिया चैनल
सीमावर्ती रामसर कस्बे का सोनिया चैनल वाटर हार्वेस्टिंग का अनुपम उदाहरण है। यहां पहाड़ी क्षेत्र के पास यह तालाब बना हुआ है। इस तालाब में पानी के लिए बेरियां ग्रामीणों ने अपनी परंपरागत सोच से सालो पहले बना ली थी। बारिश का पानी तालाब में जमा हों और जब यह पानी रीतने लगे तो रिचार्ज हुई बेरियां सालभर तक पानी उपलब्ध करवाए।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी के करीब 25 साल पहले के दौरे में उन्हें बताया गया कि इस तालाब को पहाड़ों के एक चैनल से जोड़ दिया जाए तो यहां बेरियां ज्यादा होगी और बड़ी समस्या का समाधान भी। इस योजना को लागू करते हुए एक चैनल बनाया गया और इससे यह तालाब लबालब रहने लगा। बीते वर्षों से इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है,इससे दुर्दशा होने लगी है। बेरियों का पुननिर्माण भी जरूरी हो गया है।
कैसे होता है निर्माण

बहाव व ढलान की जमीन
तालाब नाडी के निर्माण का भी वैज्ञानिक तरीका है। गांव के पास में जहां ढलान में जमीन हों और पानी का बहाव निचले स्तर पर माना जाता है वहां बड़ी जमीन पर तालाब व नाडी का निर्माण किया जाता है।
आगोर जरूरी

तालाब नाडी के पास आगोर रखी जाती है। यानि पानी आने के लिए जमीन का बड़ा हिस्सा। कच्ची नहरनुमा पाळ भी रहती है जिसको स्थानीय भाषा में आड कहते है जिससे पानी पहुंचता है। इस पर अतिक्रमण या गंदगी फैलाने को ‘ पाप’ की श्रेणी में लिया जाता है और सामाजिक दण्ड का प्रावधान भी रखा गया।
खुदाई जरूरतमंद लोगों ने की

अब सरकारी स्तर पर तालाबों की खुदाई करवाई जाती है लेकिन जैसे-जैसे गांव ढाणियां बसे इन तालाबों की खुदाई भी सामाजिक भागीदारी से की गई। लोगों ने तालाब श्रमदान कर खोदे और इनकी पाळ का निर्माण किया। तालाब में बारिश की मिट्टी डालकर उनको पक्का भी इसी तरह किया गया।

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