टिड्डी दल ने पाकिस्तान में भी भारी तबाही मचाई है। वहां ब्लूचिस्तान, सिंध और पंजाब प्रांत में कई हेक्टेयर में कपास, चावल व ज्वार की फसल नष्ट हो चुकी है। पाकिस्तान के परेशान किसान सेना लगाने की मांग कर रहे हैं। कुछ दिन पहले ही सिंध विधानसभा ने तो टिड्डियों से निपटने के लिए विशेष बजट तक पास किया है।
अब तक 4500 हेक्टेयर में नियंत्रण
भारत के टिड्डी नियंत्रण संगठन ने अप्रेल से लेकर अब तक जैसलमेर में 4500 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर नियंत्रण कार्यक्रम चलाया है। फायरिंग रेंज के पास भादरिया, हमीद जेसुराणा, धानेली के पास तेजसी जैसे कई गांव ढाणियों में टिड्ड्यिों के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है। पाकिस्तान से लगातार टिड्डी बॉर्डर पार करके भारत की ओर आ रही है।
मानसून के कारण भारत में अब नमी युक्त मौसम होने और तापमान कम होने से टिड्डियों के लिए अनुकूल मौसम हो गया है और वे अण्डे दे रही है। वैसे श्रीगंगानगर से बाड़मेर तक बॉर्डर के उस पार सिंध के छह जिलों में टिड्डी का प्रकोप है। इसमें बहावलपुर और मीरपुर खास प्रमुख है। पाकिस्तान का अब केवल खैबर पख्तूनवा प्रांत ही टिड्डी से सुरक्षित बचा है।
संयुक्त राष्ट्र संगठन से सम्बद्ध विश्व कृषि एवं खाद्य संगठन की पिछले दिनों पांच दिवसीय 14वीं एग्जीक्यूटिव कमेटी मीटिंग में विश्व के पचास से अधिक देशों के टिड्डी अधिकारियों ने हिस्सा लिया। भारत की तरफ से भी अधिकारी पहुंचे। बैठक में सऊदी अरब, ईरान व पाकिस्तान में टिड्डी फैलने पर चिंता जताई गई। साथ ही मानसून को देखते हुए भारत को अपनी तैयारी पुख्ता रखने की सलाह दी गई है।
इससे पहले भारतीय उपमहाद्वीप में 1950, 1960 और 1990 के दशक में बड़े टिड्डी हमले हुए हैं। अंतिम टिड्डी हमला 1993 में हुआ था। वर्तमान में पाकिस्तान का 3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जिसमें ब्लूचिस्तान का चोलिस्तान रेगिस्तान, थार मरुस्थल, उमरकोट, नारा मरुस्थल और सुकर क्षेत्र शामिल है।