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बाड़मेर

राजस्थान के बाड़मेर में घरों के निर्माण से पहले बनाए जाते टांके, टांकों में सहेजते हैं बारिश का पानी, वर्षभर बनता है सहारा

Rajasthan News : बाड़मेर-जैसलमेर के रेगिस्तान में पानी की कमी रहती है। इस समस्या से निजात पाने के लिए यहां घरों के निर्माण से पहले टांके बनाए जाते हैं। इनमें बारिश का पानी सहेजा जाता है। लोगों के लिए यह पानी वर्षभर काम आता है।

बाड़मेरMay 16, 2024 / 05:35 am

Omprakash Dhaka

Rajasthan Barmer Jaisalmer stitches in houses water harvesting Save rain water in tanks Jal Jeevan Mission

पानी का टांका

रतन दवे
Jal Jeevan Mission Barmer-Jaisalmer : रेगिस्तान में कहावत है…घी का घड़ा फूटा तो कोई बात नहीं लेकिन पानी का घड़ा नहीं फूटना चाहिए। बाड़मेर-जैसलमेर के रेगिस्तान में पानी की कमी रहती है। इस समस्या से निजात पाने के लिए यहां घरों के निर्माण से पहले टांके बनाए जाते हैं। इनमें बारिश का पानी सहेजा जाता है। लोगों के लिए यह पानी वर्षभर काम आता है। यहां बारिश का पानी ही अधिकांश गांवों में सहारा है।

30 हजार लीटर के 40 से 50 हजार टांके

टांकों की महत्ता को यहां सरकार ने भी समझा। अब मनरेगा में खेतों में बनने वाला एक टांका 3 लाख रुपए की लागत से बन रहा है। इससे भूमि में भी सुधार होता है। इनमें करीब 30 हजार लीटर पानी स्टोरेज की क्षमता है। ऐसे 40 हजार के करीब टांके सालाना बन रहे है। वर्ष 2009 से अब तक 1 लाख 50 हजार टांके बनाए गए हैं। अन्य योजनाओं का मिलाया जाए तो यह संख्या 2.5 लाख के करीब है।

बारिश तक सहारा

30 हजार लीटर के टांके का निर्माण करने का मकसद है कि इसमें संरक्षित पानी वर्षभर (अगली बारिश तक) लोगों के पेयजल के काम आ जाता है। वाटर हार्वेस्टिंग का यह अच्छा उदाहरण है।

पानी चोरी रोकने का जतन

लोग खेतों में बने टांकों पर ताले भी लगाते हैं। ताले लगाने के दो कारण हैं। एक तो कोई इस पानी को चोरी करके नहीं ले जाए व दूसरा जानवर या बच्चे इस टांके में नहीं गिर जाएं।

हर घर नल का इंतजार

जलजीवन मिशन के तहत हर घर नल पर काम हो रहा है लेकिन बाड़मेर अभी डार्कजोन में है। यहां 14 प्रतिशत से भी कम काम हुआ है। पेयजल के लिए नहरी पानी उपलब्ध नहीं है। करीब 2.5 लाख घरों को लेकर अभी योजना भी नहीं बनी है।

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