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बाड़मेर

Rajasthan : लड़कियों से कहीं अधिक लड़कों को है इस बीमारी का रिस्क, जानें क्या है वजह

Autism More Common in Boys : मां-बाप की बेतुका लाइफ स्टाइल पैदा होने वाले बच्चों को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की बीमारी दे रही है। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में जन्म लेने वाले प्रत्येक 10 हजार बच्चों में करीब 100 बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीडि़त होते हैं। यह संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है।

बाड़मेरApr 02, 2024 / 10:44 am

जमील खान

Autism More Common in Boys

Rajasthan : लड़कियों से कहीं अधिक लड़कों को है इस बीमारी का रिस्क, जानें क्या है वजह

महेन्द्र त्रिवेदी
Autism More Common in Boys : मां-बाप की बेतुका लाइफ स्टाइल पैदा होने वाले बच्चों को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की बीमारी दे रही है। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में जन्म लेने वाले प्रत्येक 10 हजार बच्चों में करीब 100 बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीडि़त होते हैं। यह संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है। अध्ययनों में पाया गया कि करीब 50 फीसदी ऐसी महिलाएं जो डिप्रेशन में रहीं उनके बच्चे एएसडी से पीडि़त पाए गए। यह लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में काफी कम होती है।

रिपोर्ट के अनुसार लड़कों में यह लड़कियों की अपेक्षा चार गुना ज्यादा पाई जाती है। एक्सपर्ट बाताते है कि पिछले कुछ समय से बीमारी तेजी से बढ़ी है और पीडि़तों की संख्या तीन गुना तक हो चुकी है। यह एक तरह की डिसएबिलिटी है, जिससे पीडि़त बच्चा ठीक प्रकार से स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर पाता है। यहीं नहीं, इससे पीडि़त बच्चा कोई बात या अभिव्यक्ति को भी आसानी से समझ नहीं पाता है। विशेषज्ञों की मानें तो दिमाग पूरी तरह से विकसित न होने के कारण बच्चे की सोचने-समझने की क्षमता काफी कम हो जाती है।

बिहेवियरल थैरेपी बन सकती है मददगार
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते है कि ऑटिज्म पीडि़त के उपचार के लिए क्लीनिकल उपचार अभी तक संभव नहीं है। लेकिन इसके लिए बिहेवियरल थैरेपी और एजुकेशनल प्रोगाम की मदद ली जा सकती है। जिससे बच्चा काफी कुछ समझ सकने में सक्षम बन सकता है।

ऑटिज्म बीमारी में केवल सपोर्ट ट्रीटमेंट
ऑटिज्म पीडि़त बच्चों में मेल चाइल्ड ही अधिकांश आते हैं इससे बच्चों में गुस्सा और नींद नहीं आने की शिकायत रहती है। जिसका उपचार दवाओं से किया जाता है। इसमें सपोर्ट ट्रीटमेंट ही संभव होता है। ग्रामीण इलाकों में इस तरह के मामले काफी है। इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाए तो रोकथाम संभव हो सकती है। डॉ. गिरीश बानिया, मनोरोग विभाग विशेषज्ञ

पीडि़त के लक्ष्ण
-आई कॉन्टैक्ट करने से बचना

-सामान्य व्यवहार नहीं

-बुलाने पर जवाब नहीं देना

-अकेले रहना ज्यादा पसंद

-दूसरे की भावना न समझना

-एक ही हरकत बार-बार करना

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