11 सितंबर 2008 को शहर निवासी भुवनेश जैन ने सूचना के अधिकार के तहत विदेश मंत्री भारत सरकार से जानकारी मांगी कि मीरूखां पुत्र अकलू खां आरबी की गफन, अनवर खां निवासी रासबानी, कोजाखां निवासी रासबानी, बींजाराम निवासी भीलों का तला, टीलाराम निवासी भीलों का ताल, साऊराम निवासी सरूपे का तला और भगूसिंह निवासी धनाऊ पाकिस्तान की जेलों में बंद है।
ये किन-किन जेलों में बंद है? रिहाई कब होने वाली है? रिहाई के लिए भारत सरकार दूतावास ने क्या प्रयास किए है? इसकी जानकारी दी जाए। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान दूतावास को पत्र भेजा जिस पर जवाब आ गया कि सात में से चार लोगों का पता है और तीन का नहीं। चार लोग कराची व बहावलपुर की जेल में है।
राष्ट्रीयता के प्रमाण भेजे
कोजाखां, अनवर, मीरूखां एवं बींजाराम के पाकिस्तान की जेलों में बंद होने का पता तो मिल गया लेकिन मुश्किल यह हुई कि इनकी नारगरिकता का प्रमाण पत्र नहीं था। बीस साल से जेलों में बंद इन लोगों की रिहाई नहीं होने की वजह भी यही थी कि इनको कहां भेजा जाए? सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुहिम को हाथ में लिया और इनके नागरिकता के प्रमाण पत्र पूरे करवाकर पाकिस्तान व भारतीय दूतावास को भेज दिए। दोनों देशों के न्यायिक अधिकारियों सहित एक कमेटी ने कागजात पूरे होने की जानकारी बाद इनको रिहा करने के आदेश किए और 23 जुलाई 2010 को बाड़मेर के चार नागरिक वतन लौट आए।
कोजाखां, अनवर, मीरूखां एवं बींजाराम के पाकिस्तान की जेलों में बंद होने का पता तो मिल गया लेकिन मुश्किल यह हुई कि इनकी नारगरिकता का प्रमाण पत्र नहीं था। बीस साल से जेलों में बंद इन लोगों की रिहाई नहीं होने की वजह भी यही थी कि इनको कहां भेजा जाए? सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुहिम को हाथ में लिया और इनके नागरिकता के प्रमाण पत्र पूरे करवाकर पाकिस्तान व भारतीय दूतावास को भेज दिए। दोनों देशों के न्यायिक अधिकारियों सहित एक कमेटी ने कागजात पूरे होने की जानकारी बाद इनको रिहा करने के आदेश किए और 23 जुलाई 2010 को बाड़मेर के चार नागरिक वतन लौट आए।
आरटीआई की ताकत पता चला
आरटीआई का अधिकार कितना ताकतवर है इसका अहसास तब हुआ जब पोस्टल डाक के जरिए भेजी आरटीआई से बीस साल बाद यह पता चल गया कि ये लोग है कहां? पहली कोशिश ही यह थी कि इनको तलाशा जाए जो पूरी हुई। फिर रिहाई तक की पूरी मुहिम में आरटीआई मददगार साबित हुई।
– भुवनेश जैन, आरटीआई एक्टिविस्ट
आरटीआई का अधिकार कितना ताकतवर है इसका अहसास तब हुआ जब पोस्टल डाक के जरिए भेजी आरटीआई से बीस साल बाद यह पता चल गया कि ये लोग है कहां? पहली कोशिश ही यह थी कि इनको तलाशा जाए जो पूरी हुई। फिर रिहाई तक की पूरी मुहिम में आरटीआई मददगार साबित हुई।
– भुवनेश जैन, आरटीआई एक्टिविस्ट