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बाड़मेर

Success story : 3 असफल प्रयास के बाद निराश हुए बेटे का पिता ने बढ़ाई हिम्मत, चौथे में IAS बन किया कमाल

बाड़मेर में एक शिक्षक के घर में जन्मे देव चौधरी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल के बाद बाड़मेर शहर में हुई। यूपीएससी की तैयारी के लिए देव दिल्ली पहुंचे। जहां शुरू हुआ उनका संघर्ष। तीन असफल प्रयास के बाद वह अपने सपने को साकार करने मे कामयाब रहे।
 
 
 
 

बाड़मेरFeb 07, 2024 / 06:56 pm

Anant

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सक्सेस स्टोरी की इस सीरीज में आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी जानेंगे जिसने यूपीएससी जैसी बड़ी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल कर देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी हासिल की है। कहानी राजस्थान के बाड़मेर के रहने वाले आईएएस अधिकारी देव चौधरी की है, जिन्होंने 2012 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने का पहला प्रयास किया था, लेकिन तीन असफलताओं के बाद उन्होंने 2015 में आईएएस बनकर अपने सपनों को पूरा किया।

सफलता की तो बात हम करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लेते हैं कि लगातार तीन असफलताओं के बाद देव चौधरी ने किन चुनौतियों से लड़कर ये कामयाबी पाई। देव बताते हैं कि पहले प्रयास में उन्होंने प्रिलिम्स में सफलता पाई, लेकिन मेन्स क्लियर नहीं कर सके। असफलता के बाद निराश होना स्वाभाविक था, लेकिन एक आइडिया मिला कि हमें किन विषयों पर ध्यान देने की जरूरत है। फिर उन्होंने उन विषयों की गहनता से अध्यन की। जिसका परिणाम भी उन्हें मिला, दूसरे अटेम्ट में मेंस क्लियर हो गया, वो इंटरव्यू के लिए गए जहां एक बार फिर से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा।

तीसरे प्रयास में उन्होंने तीनों क्लियर किए। लेकिन उन्हें वो पद नहीं मिला जिसका ख्वाब उन्होंने तैयारी के दौरान देखा, दूसरे शब्दों में कहें तो रैंक कम थी इसलिए वह आईएएस नहीं बन सके। इसके बाद जो उन्होंने किया वह अपने आप में असाधारण है। उन्होंने चौथी बार (2015 में) इस परीक्षा में बैठने का निर्णय किया। इस बार उन्होंने ना केवल तीनों राउंड को क्लियर किया बल्कि आईएएस बनकर अपने सपने को हासिल करने में कामयाब रहे।

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बाड़मेर में एक शिक्षक के घर में जन्मे देव की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल के बाद बाड़मेर शहर में हुई। यूपीएससी की तैयारी के लिए देव दिल्ली पहुंचे। पिता शिक्षक थे, इसलिए देव को बहुत ज्यादा आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन लगातार मिल रही असफलता ने उन्हें हताश जरूर किया। हालांकि देव ने कामयाबी तक धैर्य बनाए रखा। पिता भी मुश्किल दौर में उनका हौसला बढ़ाते रहे। देव बतातेे हैं कि हिंदी शैक्षणिक पृष्ठभूमि के कारण शुरुआती दौर में उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

पढ़ाई के लिए स्टडी मेटेरियल हिंदी में उस स्तर के उपलब्ध नहीं हो रहे थे जो आमतौर पर इंग्लिश में बड़ी ही आसानी से उपलब्ध होता है। फिर उन्होंने इंग्लिश को भी सुधारना शुरू किया। और लंबे समय की मेहनत के बाद उन्हें इस विषय में भी दक्षता हासिल हुई। जिसके बाद वह कामयाब हो पाए। देव तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। वर्तमान में वह गुजरात कैडर के अधिकारी हैं।

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