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बड़वानी

टापू बन रहे गांव के लोगों को भी माना जाए प्रभावित, उनका भी हो पुनर्वास

डूब प्रभावितों के बीच पहुंचा प्रशासन, 300 से अधिक परिवारों ने बताई समस्याएं, पुनर्वास स्थलों को लेकर भी लोगों ने उठाए सवाल, कहा बिना सुविधा कैसे रहे वहां, लगातार बढ़ते जल स्तर से प्रशासन की चिंता बढ़ी, हर हाल में खाली कराना गांव

बड़वानीAug 25, 2019 / 11:21 am

मनीष अरोड़ा

Administration concerns over Sardar Sarovar dam, back water

Administration concerns over Sardar Sarovar dam, back water

बड़वानी.
सरदार सरोवर बांध के बढ़ते बैक वाटर से प्रशासन की चिंता बढऩे लगी है। डूब ग्रामों में रह रहे प्रभावितों का विरोध प्रशासन को भारी पड़ रहा है। वहीं, डूब प्रभावित अपने उचित पुनर्वास और बसावटों में पूर्ण व्यवस्थाओं की मांग करते हुए गांव में ही डटे है। ग्राम जांगरवा में विस्थापन के दौरान एक वृद्ध की मौत के बाद ग्रामीणों का आक्रोश ओर भी बढ़ गया है। जिसके बाद प्रशासन का अमला शनिवार को ग्राम जांगरवा पहुंचा और डूब प्रभावितों की समस्याओं के निराकरण के लिए शिविर का आयोजन किया। यहां 300 से अधिक डूब प्रभावितों ने अपनी समस्या बताई। सभी का कहना था कि जो गांव डूब में नही आ रहा, लेकिन टापू बन रहा है, उन्हें भी प्रभावित माना जाए और पुनर्वास नीति का लाभ दिया जाए।
शनिवार सुबह 11 बजे प्रशासन ने ग्राम जांगरवा के डूब प्रभावितों के लिए ग्राम पंचायत अवल्दा में शिविर लगाया। जिसमें भूअर्जन अधिकारी शिवप्रसाद मंडरा, कार्यपालन यंत्री आरएस चौंगड़, तहसीलदार राजेश पाटीदार, नबआं की ओर से राहुल यादव, रामेश्वर सोलंकी शामिल हुए। राहुल यादव ने बताया कि बड़वानी जिले के 65 गांव डूब में आ रहे है, जिनका आज भी कानूनी पुनर्वास बाकी है। जांगरवा ग्राम 136 मीटर वाटर लेवल पर टापू बनने वाला है। जिसमें आने जाने का कोई रास्ता नहीं रहेगा। ग्रामीणों का कहना था कि टापू में रहने वालों को भी डूब प्रभावित ही माना जाए और इनका भी पुनर्वास किया जाए।
गुजरात भेजे गए लोगों का भी स्थानीय तौर पर हो पुनर्वास
नबआं कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों को बताया कि कई डूब प्रभावितों को मकान के लिए प्लाट मिलना बाकी है। मकान के मुखिया के साथ व्यस्क पुत्रों को भी पात्र माना जाए और उन्हें भी प्लाट दिया जाए। साथ ही मकान बनाने के लिए 5.80 लाख की पात्रता भी दी जाए। यहां के विस्थापितों को गुजरात में जमीन दी गई है, उसमें से अधिकतर जमीन खराब है और खेती के लायक नहीं है। जिसके कारण खेत मालिक भी वहां मजदूरी करने के लिए मजबूर है। इन लोगों का स्थानीय तौर पर पुनर्वास हो और बसावटों में प्लाट दिए जाए।
16 परिवार 60 लाख की पात्रता वाले
नबआं कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों को बताया कि ग्राम जांगरवा में ही 16 विस्थापित परिवार ऐसे है जो 60 लाख रुपए की पात्रता वाले है और इनका नाम भी सूची में आ चुका है। इन परिवारों को अभी तक मुआवजा भी नहीं दिया गया। वहीं, 19 परिवार ऐसे है जिन्हें 15 लाख रुपए का मुआवजा मिलना बाकी है। इन परिवारों को भी शीघ्र मुआवजा दिलवाया जाए। इसके साथ ही डूब प्रभावितों ने बसावटों की स्थिति को लेकर भी सवाल उठाए। प्रभावितों का कहना था कि बसावटों में कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। बसावटों में सुविधाएं दी जाए, ताकि परिवार वहां जाकर रह सके।
25 अगस्त से बैठेंगे धरने पर
नबआं की प्रमुख नेत्री मेधा पाटकर ने शनिवार को भोपाल में अपना मोर्चा खोला। यहां आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने जानकारी दी कि नर्मदा घाटी संकट से गुजर रही है। स्थानीय अधिकारियों को इसकी कोई चिंता नहीं है। मप्र की राजनीतिक हार और केंद्र व गुजरात की हठधर्मिता से घाटी के लोगों की जान पर बन आई है। यदि सरकार बांध में पानी भरने पर रोक नहीं लगा पाती है तो 25 अगस्त दोपहर 12 बजे बड़वानी में मेधा पाटकर, देवराम कनेरा, कमला यादव व अन्य अपने आप को राखी बांधकर नर्मदा मैया में उतरकर नए संघर्ष की राह पर कदम रखेंगे।

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