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बड़वानी

इंसान तो दूर भगवानों का भी विस्थापन नहीं कर पाई सरकार

सरदार सरोवर बांध की डूब में आ रहे 4 सौ मंदिर, पुरातत्व महत्व के स्थान, मोहनजो दाड़ो, हड़प्पा से पुरानी है नर्मदा घाटी की सभ्यता, यहां मिला था दुनिया का पहला किसान, बैक वाटर में डूब रहे 99 से ज्यादा ऐतिहासिक स्थल, सिर्फ 10 का हुआ विस्थापन

बड़वानीJul 08, 2019 / 10:37 am

मनीष अरोड़ा

Mojeshwar Mahadev Temple at Kasrawad, Dattatray Temple at Rajghat

Mojeshwar Mahadev Temple at Kasrawad, Dattatray Temple at Rajghat

बड़वानी. सरदार सरोवर बांध की डूब में आ रहे गांवों में बसे लोगों का तो पुनर्वास बाकी है ही, साथ में इन गांवों में बने देवस्थलों का भी विस्थापन नहीं हो पाया है। इंसान तो इंसान, भगवान के घर भी अपने पुनर्वास की राह तक रहे है। सरदार सरोवर बांध की डूब में बड़वानी, खरगोन, धार जिले के करीब 400 मंदिर व कई मस्जिद डूब में आ रहे है। इसमें से 99 मंदिर तो पुरातत्व और ऐतिहासिक महत्व के है। जिसमें से मात्र कुछ का ही विस्थापन सरकार कर पाई है। केंद्र सरकार अब बांध को पूरा भरने की तैयारी में है, ऐसा हुआ तो नर्मदा घाटी की पुरातत्व महत्व और प्राचीन पौराणिक महत्व की धरोहरें भी डूब जाएगी।
सरदार सरोवर बांध की डूब में आ रहे 65 गांवों के 15 हजार से ज्यादा प्रभावितों का विस्थापन बाकी है। साथ ही बड़वानी जिले के 99 ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के मंदिरों का भी विस्थापन अब तक नहीं हुआ है। बड़वानी के राजघाट में ही एक दर्जन से ज्यादा प्राचीन मंदिर अब भी बसे हुए है। हालांकि इन मंदिरों के लिए प्रशासन ने कुकरा बसावट में जगह दी है, लेकिन विरोध के चलते मंदिरों का विस्थापन नहीं हो पाया। क्षेत्रवासियों और नर्मदा भक्तों की मांग है कि रोहिणी तीर्थ राजघाट पर नर्मदा किनारे ही इन मंदिरों को संरक्षित रखा जाए। यहां बनी ऐतिहासिक महत्व की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि भी प्रशासन ने दो साल पहले जबरदस्ती कर विस्थापित कर दी थी। जिसका भी जमकर विरोध हुआ था।
बिना शिफ्ट किए नहीं ला सकते डूब
प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, सरदार सरोवर बांध की त्रासदी पर किताब लिखने वाले चिन्मय मिश्र ने बताया कि नर्मदा घाटी की सभ्यता मोहनजो दाड़ो और हड़प्पा से भी प्राचीन है। बड़वानी के पास धार जिले के चिखल्दा और खापरखेड़ा के बीच इसके सबूत भी मिले है। चिखल्दा में ही दुनिया के पहले किसान होने का भी पता चला है। पुरातत्व महत्व के स्थानों और वस्तुओं को बिना हटाए किसी कीमत पर पानी नहीं भरा जा सकता। 50 साल पहले आंध्रप्रदेश में नागार्जुन सागर बांध की डूब में आ रहे मंदिरों को जैसा की जैस शिफ्ट किया गया था। अब तो तकनीक बहुत उन्नत हो गई है तो ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को शिफ्ट क्यो नहीं किया जा रहा।
35 एकड़ में बनना था म्यूजियम
चिन्मय मिश्र ने बताया कि नर्मदा घाटी के इतिहास को संरक्षित करने ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने के लिए पुरातत्व विभाग ने बहुत पहले इंदौर में एक ओपन म्यूजियम बनाने की घोषणा भी की थी। जिसके लिए 35 एकड़ जमीन का आंवटन भी हो चुका था। बाद में घाटी की सभ्यता को छुपाने के लिए ताकि बांध बन जाए और कोई विघ्न न आए इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। पुरातत्व विभाग के प्रो. ओटा जिन्होंने पुरातत्व महत्व के स्थानों, चीजों की बड़वानी में खोज की थी, उन्हें अपनी खोज जारी रखने से रोकने के लिए हटा दिया गया। म्यूजियम की जमीन संस्कृति विभाग और पर्यावरण विभाग को दे दी गई।
आधा अधूरा किया विस्थापन
नर्मदा बचाओ आंदोलन नेत्री मेधा पाटकर ने बताया कि डूब प्रभावितों का तो आधा अधूरा विस्थापन एनवीडीए ने किया है, भगवानों को भी विस्थापित नहीं कर पाए। कसरावद में मोजेश्वर महादेव मंदिर को विस्थापित किया और उसके साथ के तीन प्राचीन महत्व के मंदिर छोड़ दिए। भीलखेड़ा स्थित 12 प्राचीन छत्रियों में से छह को बसावट में लाया गया, उसमें से भी इस बारिश में एक छत्री गिर गई है। जिले में कई ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थान है जिनका आज भी विस्थापन होना बाकी है।
डूब में आ रहे प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल
सरदार सरोवर बांध की डूब में बड़वानी, खरगोन और धार जिले के ऐतिहासिक, प्राचीन स्थल डूब में आ रहे है। जिसमें प्रमुख कोटेश्वर महादेव मंदिर निसरपुर, बोधवाड़ा शिव मंदिर, भगवान दत्तात्रय मंदिर राजघाट, राजा श्रावणमणी महाराज मंदिर भीलखेड़ा, पांडव कालीन गुफाएं व पुरात्व अवशेष छोटा बड़दा, नागेश्वर मंदिर, पांडव कालीन गुफाएं धरमपुरी, प्राचीन शिवमंदिर नावड़ातौड़ी खरगोन, और खापरेखड़ा धार जहां निमाड़ क्षेत्र के पहले किसान के अवशेष मिले हैं।

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