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बड़वानी

पीने लायक नहीं रहा पुण्य सलिला मां नर्मदा का पावन जल

बैक वाटर और अवैध खनन से दूषित हो रहा नर्मदा जल, गुजरात में 138 गांवों में सरदार सरोवर के पानी को पीने से रोका, दूषित जल से नर्मदा में मछलियों की तादात भी हो रही कमारा

बड़वानीFeb 10, 2019 / 11:20 am

मनीष अरोड़ा

Narmada water being contaminated with backwater and illegal mining

Narmada water being contaminated with backwater and illegal mining

खबर लेखन : मनीष अरोरा
ऑनलाइन खबर : विशाल यादव
बड़वानी. सरदार सरोवर बांध के बैक वाटर और लगातार हो रहे नर्मदा तटों पर अवैध रेत उत्खनन से पुण्य सलिला मां नर्मदा का पावन जल अब पीने लायक नहीं रह गया है। मां नर्मदा का रुका हुआ पानी दूषित हो रहा है, जिससे इसमें जहरीले पदार्थ पनप रहे है। गुजरात सरकार ने तो सरदार सरोवर के पानी पर पीने से रोक लगा दी है। इससे सबसे अधिक संकट गुजरात के नर्मदा तटों और नहर किनारे बसे लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। दूषित जल से मछलियां भी मर रही है। जिसके कारण मछुआरों की रोजी रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है। ये आरोप नर्मदा बचाओ आंदोलन ने बैक वाटर के दूषित होने पर गुजरात सरकार की एक रिपोर्ट के आधार पर लगाया है। नबआं का कहना है कि दूषित बैक वाटर का असर मप्र के नर्मदा तटों पर भी शुरू होने लगा है।
शनिवार को नबआं कार्यालय में आंदोलन नेत्री मेधा पाटकर ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि एक ओर तो घाटी में मां नर्मदा की जयंती मनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही है। दूसरी ओर मां नर्मदा की हालत दिन ब दिन खराब होते जा रही है। गुजरात सरकार ने 138 गांवों में पीने के लिए पानी लेने से रोक दिया गया है। ये बात तब सामने आई जब जलाशय से निकलकर कैनाल में जा रही कई टन मछलियों का ढेर मृत होकर किनारे पर इक_ा हुआ। मछलियों के साथ पानी भी जहरीला और पानी के लिए अयोग्य है। ये पता चला है। जल प्रदूषण ही नहीं जल जहरीला बनने से इस पर गुजरात और केंद्र सरकार अलग-अलग कारण बताते हुए सबको भ्रमित कर रही है।
अलग-अलग कारण बताकर भ्रमित कर रही गुजरात सरकार
मेधा पाटकर ने बताया कि पहले खबर आई है कि सरदार सरोवर के टर्बाइन्स से निकले पानी में कुछ रासायनिक द्रव्य पाए गए। फिर खबर फैली कि डैम साईट के कर्मचारियों का कहना है कि सी प्लेन जलाशय में चलाने के इरादे से यदि मगरमच्छों को हटाने या मारने के लिए कुछ द्रव्य पानी में डाले गए हैं। इससे मछली तो लाखों की तादाद में मर गई। करीबन 500 मगरमच्छों में से 15 मगर मच्छों को वन विभाग से हटाकर जलाशय में डाले गए हैं और अधिक डाले जाने वाले है। मादा मगरमच्छ पहले मर जाएगी और और 40 प्रतिशत तक उतार एवं जमीन पर सांस लेना असंभव होने से गर्भधारणा रुकता है। ये सब सरदार पटेल और पर्यटन के नाम पर हो रहा है। पर्यावरणीय दृष्टि से ये जलसंपत्ति का विनाश लाएगी। नर्मदा का वाहन माना गया मगरमच्छ का अपना स्थान और योगदान है।
टाक्सिस गैस के कारण हो रहा जल प्रदूषण
अब शासकीय खबर ये है कि नर्मदा में सरदार सरोवर के ही नीचे भूकंप की हलचल होकरए धरती से टाक्सिक गैसेस निकली है। इससे ये पानी का प्रदूषण हो रहा है। जिससे पानी में जहरीलापन आया है। राजपीपला के गुजरात जल बोर्ड के अधिकारीने कहा कि पानी शुद्ध करे बिना पीना संभव नहीं है। केमिकल्स नहीं है, लेकिन पीने लायकता खत्म हो चुकी है। ये मुख्य नहर एवं वाडिया शाखा नहर से लिए सैंपल में सल्फाइड की मात्र बढऩे से पाया गया है। एक अंदाजा है कि मछली मरने से तथा किसी कंपनी से पानी छोड़ा जाने तथा शौचालय का गंदा पानी बड़ी मात्रा में छोड़ा जाने से ये हुआ है। मछली के मरने का दूसरा कारण बताया जा रहा है।
पानी में आक्सीजन की मात्रा का कम होना
मेधा पाटकर ने बताया कि पानी में आक्सीजन की मात्रा 4.2 एमजी/एल तक हो गई है। गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि पानी पीने योग्य नहीं है। उन्होंने इसकी जांच शुरू कर दी है। गुजरात के मुख्य सचिव जेएन सिंह का कहना है कि पानी में गंदगी के चलते नर्मदा और छोटा उदयपुर जिले के 138 गांवों में इसी महीने फरवरी से नर्मदा के पानी पीने पर पूरी रोक लगा दी है। एक ओर इन गांवों में पानी की रोक लगा दी गई है। जबकि यही पानी गुजरात के बड़े शहरों, बड़ोदा, अहमदाबाद, गांधीनगर को आज तक पहुंचाया जा रहा है। इन सब कारणों से स्पष्ट हैं कि पूरी जल जांच के बिना सरदार सरोवर उस उद्देश्य के लिए निरुपयोगी हुआ है।
मप्र की पिछली सरकार कई बड़ी नर्मदा लिंक परियोजनाएं लेकर आई थी। इससे वह नर्मदा का पानी मालवा तक ले जाने की बात करते थे, लेकिन पिछले वर्ष जहां नर्मदा में पानी ही नहीं था। ऐसी स्थिति में यदि इन बड़ी लिंक योजनाओं पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो नर्मदा में सिर्फ प्रदूषण ही नहीं बढ़ेगा। बल्कि नर्मदा का खत्म होना भी तय है। सबसे खतरनाक बात ये है कि भूगर्भशास्त्रीय संकट की। आज तक मध्यप्रदेश में नए शोध जांच केंद्रों में से 7 है, जो मृतवत है। इन केंद्रों में कोई कर्मचारी अपने बरतन, बकरियों के साथ रहते है। एक मशीन लगी है। इससे जानकारी पिछले कुछ सालों से सीधी गांधीनगर भेजी जाती है तो 3 रिक्टर स्केल के अधिक मात्रा की भू हलचल की खबर तक लोगों को नहीं है। क्या नई सरकार अपनी जांच का खुद अवलोकन करेगी।

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