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बड़वानी

Exclusive : डूब क्षेत्रों में न पर्वों का उल्लास, न रोशनी की आस

डूब क्षेत्र के विस्थापितों की आंखों में नहीं दीपोत्सव की चमक, उदासियों के साये में मनेगा रोशनी का पर्व, डूब गांवों में नहीं दिख रहा दीपावली का उत्साह

बड़वानीOct 15, 2017 / 11:34 am

मनीष अरोड़ा

People in the drowning area will not celebrate Diwali

People in the drowning area will not celebrate Diwali

बड़वानी (मनीष अरोरा). जहां एक ओर देशभर में दीपावली का उल्लास छाया हुआ है। वहीं, दूसरी ओर बड़वानी ेके डूब क्षेत्रों में अजीब सी उदासी पसरी पड़ी है। डूब प्रभावित ग्रामों में न पर्व का उल्लास नजर आ रहा है, न ही रोशनी की कोई आस दिख रही है।डूब में आने के बाद भी एनवीडीए ने इन्हें डूब प्रभावित नहीं माना और आज भी ये प्रभावित मूल गांवों में डटे हुए है। सरदार सरोवर बांध भरने के बाद नर्मदा का जलस्तर 131 मीटर तक पहुंचने के बाद बैक वाटर इन गांवों तक पहुंचा था। इसके बाद भी प्रभावित अपने स्थान से नहीं हटे और आज भी वहीं रह रहे है।दीपावली के पर्व पर इन गांवों में खुशियां दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।


सरकार ने हमारी सारी खुशियां छीन ली
जिला मुख्यालय से लगा डूब ग्राम पिछोड़ी, यहां आम दिनों की तरह ही लोगों की दिनचर्या चल रही है। चार दिन बाद शुरू होने वाले दीपोत्सव को लेकर यहां लोगों में कोई उमंग नजर नहीं आ रही है। न तो किसी ने अपने घर पर रंगाई-पुताई कराई है और न ही किसी प्रकार की सजावट की है। दीपावली पर्व को लेकर डूब प्रभावितों का कहना है कि सरकार ने हमारी सारी खुशियां छीन ली, अब कैसे पर्व मना सकते है। डूब में आ चुके हैं, लेकिन सरकार हमें डूब प्रभावित नहीं मान रही है।अजीविका के साधन हमारे पास नहीं रहे, जैसे तैसे कर अपना जीवन यापन कर रहे है।ऐसे में कैसे दीपावली पर्व हम मनाएंगे।


खेती गई, मछली पर भी नहीं मिला अधिकार
ग्राम के 80 वर्षीय मछुआरे हीरा पिता छीतर बताते है कि उनका घर 136 मीटर बैक वाटर की डूब में आ रहा है। 2013 की बाढ़ में तो घर के अंदर तक पानी आया था। इसके बाद भी उन्हें डूब प्रभावित नहीं माना जा रहा है। रेत में खरबूजे की खेती करतेथे। बैक वाटर आने से वो साधन भी चला गया।पुस्तैनी धंधा मछली मारने का है, उसका अधिकार भी नहीं मिला। न तो सरकार ने कोई घर-प्लाट दिया, न कोईमुआवजा। व्यस्क पुत्रों को भी कुछ नहीं मिला। घर में खाने के लाले पड़े हुए है। दीपावली का पर्व हमारे लिए अंधेरा ही लेकर आया है।


मछुआ समितियों का नहीं हुआ पंजीयन
ग्राम के सोमेश्वर पिता कालू ने बताया उनका मकान डूब में आया है। सरकार ने ऐसी जगह प्लाट दिया जहां जाना नामुमकिन है। अभी भी गांव में ही बसे हुए है। व्यस्क पुत्र गणेश, मुकेश, संतोष है, जिन्हें भी डूब प्रभावित नहीं माना जा रहा है। न तो कोई मुआवजा दिया जा रहा है, न घर-प्लाट। मछुआ समितियों का भी पंजीयन नहीं किया गया। मछली मारने के अलावा कोई धंधा नहीं है। बैक वाटर बढऩे से वो काम भी बंद हो गया है। ऐसे में कैसे दीपावली पर्व मनाने की सोच सकते है।


गांव पिछोड़ी पर एक नजर…
-78 0 मकानों का सर्वे वर्ष 2001 में हुआ है।
-1000 से अधिक परिवार एटीआर के अनुसार डूब प्रभावित।
-07 स्थानों पर बसाया गया है डूब प्रभावितों को।
-30 मछुआरा परिवार यहां निवासरत, 60 व्यस्क पुत्र-पुत्री भी शामिल।
-60 लाख की पात्रता वाले 10 परिवारों को अब तक नहीं मिला मुआवजा।
-15 लाख की पात्रता वाले 167 परिवार भी देख रहे रास्ता।
-5.80 लाख की पात्रता वालों को भी अब भी मुआवजे का इंतजार।
-85 प्रतिशत परिवार अब भी मूल गांव में कर रहे बसर।

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