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बड़वानी

सरदार सरोवर की डूब में गुम हो गई आस्था की एक कड़ी

नर्मदा परिक्रमा का निचला पथ हुआ डूब में खत्म, चार जिलों के सैकड़ों आश्रम डूबे, कई बने टापू, पानी के किनारे बसे आश्रम आज भी दे रहे परिक्रमावासियों को सेवा

बड़वानीOct 09, 2019 / 10:56 am

मनीष अरोड़ा

The path of Narmada Parikrama ends in drowning

The path of Narmada Parikrama ends in drowning

बड़वानी. सरदार सरोवर बांध की डूब में जहां एक ओर गांव, घर, खेत, जमीन, जंगल के साथ पुरातत्व, ऐतिहासिक महत्व के स्थान भी डूबे है। वहीं, दूसरी ओर आस्था की एक कड़ी नर्मदा परिक्रमा पथ भी डूब गया है।
बेक वाटर के चलते बड़वानी जिले सहित खरगोन, धार जिले के नर्मदा घाटों के डूबने से नर्मदा परिक्रमा वासियों को अब नए परिक्रमा पथ तलाश करने होंगे। इन परिक्रमा पथ पर मौजूद सैकड़ों आश्रम, परिक्रमावासियों के लिए बने आश्रय स्थल, अन्न क्षेत्र भी खत्म होने से अगली बार होने वाली नर्मदा परिक्रमा के लिए भी परिक्रमावासियों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। देश में मौजूद सभी पवित्र नदियों में से सिर्फ नर्मदा नदी की ही परिक्रमा की जाती है।
नर्मदा किनारे तप करने से सीधे मिलता है मोक्ष
कहा जाता है कि गंगा किनारे मृत्यु और नर्मदा किनारे तप करने से सीधे मोक्ष मिलता है। नर्मदा पुराण में भी नर्मदा परिक्रमा का महत्व बताया गया है। नर्मदा परिक्रमा भी कई तरह की होती है। कोई पंचक्रोशी नर्मदा परिक्रमा करता है, तो कोई जनेरी नर्मदा परिक्रमा। संतों द्वारा 3 साल 3 माह और 13 दिन की परिक्रमा यात्रा की जाती है। इस यात्रा में अमरकंटक से लेकर कस्तूर (भरूच) गुजरात तक एक ही दिशा में (उत्तर या दक्षिण) तटों पर पहुंचकर वहां से वापस उसी दिशा में यात्रा करना होती है। इस नर्मदा परिक्रमा यात्रा में संत नर्मदा तटों पर निश्चित समय के लिए चातुर्मास कर तप भी करते है। सरदार सरोवर बांध के बेक वाटर के चलते इस परिक्रमा के लगभग सारे तट खत्म होने से इसका महत्व भी कम हो गया है।
अन्न क्षेत्र और आश्रम भी डूबे
नर्मदा परिक्रमा पथ पर हर पांच से सात किमी की दूरी पर नर्मदा किनारे बसे गांवों में संतों के आश्रम, भक्तों द्वारा बनाए गए अन्न क्षेत्र बनाए गए थे। परिक्रमा पथवासियों को परिक्रमा के दौरान इन आश्रमों, अन्नक्षेत्र में रात रुकने और भोजन की व्यवस्था भी की जाती है। बेक वाटर की डूब से कई आश्रम और अन्नक्षेत्र जलमग्न हो गए है। छोटा बड़दा में अन्नक्षेत्र चलाने वाले नर्मदा सेवक लोकेश पाटीदार ने बताया कि निमाड़ क्षेत्र में अधिकतर श्रद्धालु ओंकारेश्वर से कस्तूर भरूच तक की नर्मदा परिक्रमा करते है। इस यात्र पथ पर अन्न क्षेत्र और आश्रम डूबने से आने वाली परिक्रमा में यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि नर्मदा के बेक वाटर किनारे आज भी कई आश्रम और अन्नक्षेत्रों में परिक्रमापथ वासियों को सेवा दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि देवउठनी ग्यारस से लेकर अक्षय तृतीया तक लगातार नर्मदा परिक्रमा चलती है। जिसमें हजारों परिक्रमावासी शामिल होते हैं।
नहीं हो पाएंगे पवित्र दर्शन
बड़वानी जिले में नर्मदा का आगमन ब्राह्मणगांव से होता है जो कि भादल तक रहता है। नर्मदा के तट किनारे परिक्रमा पथ पर नर्मदा तटों पर कई पौराणिक महत्व के स्थान है। इन स्थानों पर यात्रा के दौरान लोग दर्शन करते थे, जो बेक वाटर की डूब के चलते अब संभव नहीं हो पाएंगे। इसमें दतवाड़ा कपिलेश्वर घाट पर ऋषि चंगाबाबा का आश्रम बना हुआ है। कहा जाता है कि चंगाबाबा ने एक पत्थर पर पूरा घाट बनाया था। इसके साथ ही मोहीपुरा में स्वामी अमुर्तादनंद महाराज का आश्रम, राजघाट पर नर्मदा आश्रम, नर्मदा मंदिर, श्रणमुक्तेश्वर महादेव मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर सहित अन्य गांवों में महत्वपूर्ण आश्रम, मंदिर भी डूब चुके है।

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