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बड़वानी

सेगांवा में आधी रात को फिर कांपी धरती, घबराहट में लोग निकले बाहर

नबआं का कहना बांध के पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आने लगे, बड़ी संख्या में मर रही नर्मदा की मछलियां, बड़दा में धंस रही जमीन, नबआं ने कहा भविष्य में अंजड़ और बड़वानी के लिए भी खतरा

बड़वानीSep 20, 2019 / 10:43 am

मनीष अरोड़ा

Trembling earth in Segawa

Trembling earth in Segawa

बड़वानी. जिले में पिछले डेढ़ माह से भूगर्भीय हलचल लगातार जारी है। बुधवार रात और गुरुवार सुबह एकबार फिर सेगांवा में भूकंप के झटके महसूस किए गए। आधी रात को धरती कांपने के बाद ग्रामीणों में घबराहट फैल गई ओर लोग घरों से बाहर निकल पड़े। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इसे सरदार सरोवर बांध का पर्यावरणीय दुष्परिणाम बताया है। बुधवार को ही बड़दा में जमीन धंसने की घटना भी हुई। वहीं, रुके हुए पानी से मछलियां भी मरने लगी है। इसके साथ ही बड़े जलीय जंतुओं का खतरा भी बढऩे लगा है।
डूब गांवों में जमीन के अंदर हो रही हलचल
नबआं कार्यकर्ता राहुल यादव ने बताया कि पानी में डूबे गांवों में जमीन के अंदर हलचल हो रही है। बुधवार को दयाराम पिता बिलूराम निवासी छोटा बड़दा का डूब किनारे पर बना पशुओं को बांधने के कोठार की जमीन धंसक गई। जिससे एक गोलाकार सा गड्ढा बन गया। इसी तरह की घटना धार जिले के निसरपुर डूब क्षेत्र में भी सामने आई है। लगातार पानी भरे रहने से मकानों के भी धंसने की आशंका बनी हुई है।
झोलपिपरी अंजड़ तक पहुंचे झटके
सरदार सरोवर में जलभराव के साथ क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलें तेज हुई है। अब इसका विस्तार होने लगा है। बड़वानी जिले के भमोरी से 9 अगस्त से भूकंप के झटके शुरु हुए थे। ये झटके साकड़, हरिबड़, उमरिया, सिवई, बिलवा रोड, मंदिलए सुराणा, बांडी, देवझिरी गांव से आगे बढ़ते हुए अब झोलपिपरी अंजड़ तक पहुंच गए हैं। यह पूरी नर्मदा घाटी की सुरक्षा के लिए खतरे संकेत है। बुधवार रात 2.24 बजे सेगांवा में और इसी समय धार जिले के एकलबारा में जमीनी हलचल महसूस की गई। वहीं, गुरुवार सुबह 9.18 बजे सेगांवा में एक बार फिर धरती कांपी।
वायुमंडल के गैसीय संतुलन में होगा बदलाव
नबआं नेत्री मेधा पाटकर ने बताया कि बांध में जलभराव से स्थानीय पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। करीब पौने दो लाख पेड़ या तो डूब चुके है, या डूबने वाले हैं। इन जैविक पदार्थों के सडऩे से उत्पन्न विषैली गैसें पर्यावरण पर लंबे समय बाद प्रभाव डालेगी। कॉर्बन डाईऑक्साइड और अमोनिया वायुमंडल के गैसीय संतुलन में बदलाव लाएगी जो स्थानीय जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों के लिए हानिकारक होगा।

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