दीपावली पर पंसारी की दुकान पर थोक व बड़े कारोबारियों के यहां छोटी-बड़ी बहीखाता अवश्य जाती थी। बदलाव की बयार के आगे छोटे दुकानदार भी अब कम्प्यूटर पर हिसाब रखने से बहीखाता खरीदने में रूचि नहीं लेते। बहीखाता विक्रेता मनोहर राज व आकाश राज ने बताया कि पहले दीपावली पर खरीदार अधिक होने से बहीखाता कम पड़ जाती थी, अब मुश्किल से 8-10 बिक पाती हैं।
व्यापारियों के अनुसार कम्प्यूटर पर बहीखाता का काम मिनटों में हो जाता हैं। कम्प्यूटर में केशबुक, बैलेंशसीट, जोड़, घटना व रोकड़ मिलाने के सभी ऑप्शन हैं। ऐसे में अलग से केल्युलेटर की भी जरूरत नहीं पड़ती। शारीरिक श्रम भी ज्यादा नहीं लगता। माथापच्ची से भी निजात मिल जाती हैं। पंसारी से लेकर सर्राफा व्यावसायी तक हिसाब-किताब, लेने-देने का खाता कम्प्यूटर में बनाने लगे हैं। ऐसे में बहीखाता से कौन सिर खपाए। बहीखाता विक्रेता बताते है कि साल दर साल खाते-बहियों की मांग भले ही कम हो रही है, लेकिन धार्मिक महत्व अभी बरकरार हैं।