राजेन्द्र ने 15 साल तक अन्तराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेली। उन्हें बचपन से क्रिकेट का शौक था। कमेंट्री सुनना पंसद था। kapil dev कपिल देव, sunil gavaskar सुनील गावस्कर के बारे में सुनकर क्रिकेट खेलने की इच्छा होती थी। देख नहीं पाते थे, लेकिन रेडियो पर क्रिकेट मैदान का शोर सुनाई देता था। इसी जज्बे के बूते राजेन्द्र ने ब्लाइंड क्रिकेट एकेडमी ज्वाइन की और क्रिकेट सीखी। वर्मा ने बताया कि वे शुरूआत में पालिश की डिब्बी की गेंद बनाकर क्रिकेट खेलते थे। राजेन्द्र 15 साल से सांभर में रह रहे हैं। राजकीय प्राथमिक विद्यालय नंबर 4 में संगीत के शिक्षक हैं। वे मूलत: शाहपुरा के पास लोर गांव के रहनेवाले हैं। जोधपुर की एनवीएस ब्लाइंड स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई की। राजेन्द्र का कहना है कि 15 साल तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने के बाद भी किसी ने उनकी सुध नहीं ली। उन्होंने आरपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करके सरकारी नौकरी प्राप्त की।
भले ही क्रिकेट जुनून दुनिया भर में सिर चढ़कर बोलता है, लेकिन नेत्रहीन खिलाडिय़ों की क्रिकेट को वैसी पहचान नहीं मिली। देश में क्रिकेट कई श्रेणियों में खेला जाता है, नेत्रहीन खिलाडिय़ों की क्रिकेट श्रेणी में भारत कई बार विश्व कप जीत चुका है। लेकिन इस श्रेणी से जुड़े क्रिकेटरों की पहचान नहीं है। अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मैचों का भी टीवी पर प्रसारण नहीं होता।
वर्ष 1991 में भारतीय नेशनल टीम (दृष्टिबाधित)में चयन हुआ। कर्नाटक में हुए पहले मैच में 146 रन बनाकर नाट आउट रहे। 1998 में दिल्ली में हुए विश्व कप की भारतीय टीम में शामिल हुए। हालांकि एक भी मैच नहीं खेल पाए। इसके बाद 2002 में चेन्नई में हुए दूसरे विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ 150 रन और 2004 में कराची में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए मैच में दोहरा शतक लगाया। बकौल राजेन्द्र दृष्टिबाधित क्रिकेट में यह रेकार्ड था। 2006 में पाकिस्तान में हुआ तीसरे विश्व कप खेला। 2007 में इंग्लैण्ड में हुई सीरिज में बी-1 कैटगिरी के श्रेष्ट खिलाड़ी रहे।
छर्रे से भरी गेंद से होता है मैच
नेत्रहीन खिलाडिय़ों की क्रिकेट में 11 खिलाडिय़ों को तीन श्रेणी बी1, बी2 बी3 में बांटा जाता है। बी1 में शत प्रतिशत ब्लाइंड के 4 खिलाड़ी, बी2 में 80 प्रतिशत ब्लाइंड के 3 खिलाड़ी बी3 में 70 प्रतिशत ब्लाइंड के 4 खिलाड़ी होते हैं। ब्लाइंड क्रिकेट का वनडे मैच 40 ओवर का होता है। स्टंप लोहे के और बॉल हार्ड प्लास्टिक की बनी होती है। इसमें छर्रे होते हैं। छर्रों की आवाज सुनकर बल्लेबाज बॉल के मारता है। अंडर आर्म बॉलिंग की जाती है। क्रिकेट पिच की लंबाई घरेलू क्रिकेट के मैदान जैसी ही रहती है।