उन्होंने अपने बुजुर्गो से पूछ लिया कि क्या ये वास्तव में ऐसा ही है? तब बुजुर्गो ने बच्चो की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा कि ये बहरूपियां (भांड ) जाति के है। ये ही कभी शिव पार्वती, राम सीता, हनुमान, अक्रुर सिंह, जिन्न, आदि का पात्र करके अपनी आजीविका कमाते है। पहले इनकी आजीविका आसानी से चल जाती थी, किंतु आधुनिकता की होड में इनकी कलां पिछड़ गई है। स्थिति यह है कि बहरूपियों को अपनी मेहनत के अनुसार भेंट नहीं मिल पाती है। इसके चलते-चलते ये कलां धीरे-धीरे कम होती जा रही है।