-जड़ों को मिलाकर बांधकर रखा जा रहा है लहसून
ब्यावर. ब्यावर सहित आस पास के कई गांवों में आज भी घरों में फ्रीज नहीं है। ग्रामीण आज भी अपनी सब्जियों व साल भर तक
काम में लिए जाने वाले प्याज व लहसून को प्राचीन पद्धति से सहेजकर रखे हुए हैं। इस पद्धति को देख आज भी लोग अचरज कर रहे हैं।
ब्यावर से सटे सुमेल में लहसून की अच्छी पैदावार होती है। यहां के किसान अपने लिए आज भी नियमित रसोई में काम आने वाले लहसून को तीन से चार साल तक रखने के लिए पुरानी पद्धति का ही उपयोग कर रहे हैं।
जड़ सहित बांधकर रख रहे हैं…
सुमेल में लहसून बोने वाले किसान छोटूसिंह भाटी ने बताया की शहरों में डीप फ्रीज या कोल्ड स्टोरेज होते हैं। जहां पर लहसून को सहेज कर रख दिया जाता है। लेकिन गांवों में पहले ही लाइट की समस्या है। इस पर भी महंगे फ्रीज को खरीदने की क्षमता हर किसी की नहीं है इसी कारण आज भी गांवों में लहसून को जड़ सहित बांधकर रख दिया जाता है। एक साथ सात से आठ लहसून की गांठें जड़ के साथ मिलाकर बांध दी जाती है। इससे लहसून बिखरता नहीं है। वहीं दीवार के सहारे रखने से इसमें हवा लगने की आशंका नहीं रहती।
तीन साल तक लेते हैं काम….
किसान छोटूसिंह ने बताया की इस लहसून को तीन साल तक काम में लिया जाता है। जड़ के साथ ही मिट्टी भी लगी होने से यह ठंडक का कार्यकरती है। इस लहसून को ढ़ाईतीन साल तक ऐसे ही रख दिया जाए तो यह खराब नहीं होता। कई मर्तबा इसी लहसून को वापस बुवाई में भी काम में लिया जा सकता है।
हर घर में लगे हैं ढेर…
सुमेल के तकरीबन हर घर में इसी प्रकार लहसून के ढेर दीवार किनारे पलंग से सटाकर रखे हुए हैं। दीवार किनारे ढेर होने से पूरे घर में लहसून की महक आती रहती है।
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