महोत्सव का शुभारंभ काष्र्णि गुरू शरणानंद महाराज ने श्रीकृष्ण व राधा के बाल स्वरूप की आरती उतारकर किया। होली उत्सव में श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर लाठियों की तड़तड़ाहट और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ब्रज की प्राचीन संस्कृति परिलक्षित हो उठी। इसके बाद रंगारंग कार्यक्रम आयोजित हुए। राजस्थान के कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति के साथ मयूर नृत्य, फूलों की होली, लठामार होली, चरकुला नृत्य, महारास आदि की प्रस्तुति दी गई। होली गायन के बीच चरकुला नृत्य व फूलों की होली के साथ जन्मस्थान परिसर में राधा जी के गांव रावल की हुरियारिनें लाठी फटकारिती हुई कूद पड़ीं। जब हुरियारिनों ने लठ बरसाने शुरू किए तो हुरियारों ने मोर्चा संभाल लिया। अठखेलियां खेलते हुए हुरियारे अपनी ढाल से हुरियारिनों के वार से बचते रहे। जन्मभूमि के सचिव कपिल शर्मा, सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी आदि की ओर व्यवस्था देखीं गई। वहीं दूसरी ओर वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर और गोवर्धन परिक्रमा में रंग-गुलाल की होली खेली गई।