वैसे तो एक छत के नीचे उपचार का प्रचार किया जा रहा है, लेकिन हकीकत धरातल से कोसों दूर है। यहां होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक अस्पताल के आसपास इतनी कीचड़ है कि आवारा जानवर विचरण करते देखे जा सकते हैं। अस्पतालों में बदबू की वजह से स्टाफ का बैठना दुभर हो जाता है। वहीं स्थिति को देखते हुए मरीजों की संख्या भी कम होती जा रही है। यही वजह है कि मरीजों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते।
बीमार अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए कई बार अस्पताल प्रशासन को यहां से गंदगी साफ कराने, जनाना अस्पताल में आने वाले मरीजों को तीमारदारों को शौच से रोकने, जलभराव की समस्या का समाधान करने से अवगत कराया। यहां तक कि मौके पर अधिकारियों को स्थिति दिखाई। लेकिन, कोई समाधान नहीं हुआ इसलिए मजबूरीवश गंदगी से उठती बदबू में उपचार करना पड़ता है। यहां कोई धणी-धौणी नहीं है। कह सकते हैं कि होम्योपैथी और आयुर्वेदिक चिकित्सा यहां लडखड़़ा गई है।
भरतपुर में आयुर्वेद विभाग के उपनिदेशक डॉ. निरंजन सिंह का कहना है कि जनाना अस्पताल परिसर में संचालित आयुर्वेद चिकित्सालय के आसपास सफाई व्यवस्था के लिए उच्चाधिकारियों को अवगत कराया। लेकिन, समाधान नहीं हुआ। तब हमने स्वयं मिट्टी-कंक्रीट डलवाए। वहीं अस्पताल में एक महिला आयुर्वेद चिकित्सक सीसीएल पर हैं और दूसरे पुरुष चिकित्सक ने आकस्किम अवकाश ले लिया। कंपाउंडर ने उपचार किया था।