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भरतपुर

मेरी लड़ाई मेयर से नहीं बल्कि हमेशा नगर निगम के खराब सिस्टम से रही

भरतपुर. चाहे नगर निगम के कथित सफाई घोटाले की बात हो या डीडी गायब कर चहेते ठेकेदारों को ठेका देने की…भाजपा के बोर्ड में ही उनकी ही पार्टी के नगर निगम के उप महापौर इंद्रपाल सिंह पाले हर बार सिस्टम पर सवाल उठाकर चर्चा में बने रहे।

भरतपुरNov 11, 2019 / 12:14 pm

Meghshyam Parashar

मेरी लड़ाई मेयर से नहीं बल्कि हमेशा नगर निगम के खराब सिस्टम से रही

मेरी लड़ाई मेयर से नहीं बल्कि हमेशा नगर निगम के खराब सिस्टम से रही

वर्ष 2014 में नया बोर्ड बनने के कुछ माह बाद ही मेयर शिवसिंह भोंट व डिप्टी मेयर इंद्रपाल सिंह पाले के बीच निगम के ही मुद्दों को लेकर अनबन होने लगी। यही कारण रहा है कि मेयर की सीट की आरक्षण लॉटरी निकलने से पहले मेयर भी पार्टी हाइकमान को उनकी खिलाफत के साक्ष्य दिखाते रहे। फिलहाल मौसम में जिस तरह ठंडक आई है, उसी तरह राजनीति में भी नेताओं के बयानों से गर्माहट आने लगी है। पार्षदी का चुनाव अभी निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जोर पकड़ेगा। फिलहाल दोनों ही दलों के बीच मुद्दा भी मेयर और डिप्टी मेयर की सीट को लेकर चल रहा है। इसलिए हमने पांच साल तक नगर निगम के सिस्टम पर सवाल उठाकर चर्चा में बने रहे डिप्टी मेयर इंद्रपाल सिंह पाले से खास बातचीत की। उसने हुई बातचीत के प्रमुख अंश..

Q. आप अपनी ही पार्टी के मेयर की खिलाफत क्यों करते रहे?
जवाब: जब शहर का विकास कराने की आवाज उठाते हैं, ठेका या व्यवस्था में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाते हैं तो वह किसी की व्यक्तिगत खिलाफत नहीं होती। अगर किसी को ऐसा लगता है तो उन्होंने जांच ही क्यों नहीं कराई। मैं पार्टी के साथ हमेशा था और रहूंगा लेकिन मैंने नगर निगम के खराब सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाई थी न कि मेयर के खिलाफ। नगर निगम अकेले मेयर से नहीं बल्कि सभी पार्षद, अधिकारी और कर्मचारियों से चलती है।

Q फिर पांच साल में आपके विरोध करने का असर क्या हुआ?
जवाब: असर इतना हुआ कि शहर की जनता जान गई कि नगर निगम में होता क्या है? सिर्फ बैठकों में कुछ देर हल्ला करने के बाद कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। इसके बाद ठेका…ठेका का खेल गुपचुप चलता रहता है।

Q. नगर निगम में कमीशनबाजी का खेल चलता है?
जवाब: यह कोई आज की बात है क्या, सालों से यह खेल चल रहा है। निगम में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारी इस पूरे सिस्टम को चलाते हैं। डीडी गायब कर चेहते ठेकेदारों को ठेका देना आम बात है। सात प्रकरणों में इसकी शिकायत भी हुई थी। एक तो लाइट खरीद का ठेका ही अपात्र ठेकेदार को दे दिया। जब भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ तो दो महीने बाद उसे निरस्त किया।

Q. नगर निगम में कमीशनबाजी का खेल चलता है?
जवाब: यह कोई आज की बात है क्या, सालों से यह खेल चल रहा है। निगम में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारी तय करते हैं। जो भी प्रस्ताव बनाया गया, वह अधूरा ही रहा। कोई भी ऐसा प्रोजेक्ट नहीं बन पाया। सीएफसीडी को लेकर जितनी भी कार्रवाई हुई है वह सब कोर्ट के माध्यम से ही हुई। इन्होंने तो काम ही शुरू नहीं होने दिया। राजेंद्र नगर, जवाहर नगर जैसी पॉश कॉलोनियों का ड्रेनेज सिस्टम खराब है।

Q. आप भी तो सफाई कमेटी के अध्यक्ष बने थे क्यों कुछ नहीं किया?
जवाब: कमेटियां तो नाम के लिए बनाई गई थी। बाकी काम तो जो कर रहे थे और होने थे, वही हुए। मैंने अध्यक्ष बनने के बाद तीन महीने तक सफाई ठेकेदार का भुगतान काटा। इससे उस ठेकेदार के खासों को मिर्च लग गई। मैंने उस समय टिप्पणी भी लिखकर दी थी, खुद तत्कालीन आयुक्त ने ही एक आदेश निकाल दिया कि कमेटियों के पास कोई फाइल प्रेषित नहीं की जाएंगी। 2014 में सफाई ठेके का बजट 1.24 करोड़ रुपए था और अब आठ करोड़ 75 लाख रुपए पर पहुंच गया है। अब जनता की बताए कि गड़बड़ी कहां हुई है।

Q. ऐसा कोई काम जो कोशिश करने के बाद भी आप नहीं कर पाए?
जवाब: शहर में ग्रीनरी को लेकर नगर निगम की प्रत्येक बैठक में मुद्दा उठाया था लेकिन कोई सुनता ही कहां है। अनावश्यक बजट तय कर दिया जाता था। किसी के पास कोई प्लानिंग ही नहीं थी। बी-नारायण गेट से सूरजपोल तक नाले की समस्या है। टेंडर भी कराया था और उसे निरस्त भी कर दिया गया।

Q. नगर निगम में गाड़ी का उपयोग व डीजल का खेल क्या है?
जवाब: मेरी गाड़ी पांच साल में मात्र निगम के कार्य से 10 हजार किमी चली है। अगर जांच ही करानी है तो उनकी ही गाड़ी की कराओ, जिनकी डेढ़ लाख किमी कहां-कहां चल गई। हर पांच साल में एक नई गाड़ी खरीदना भी तो जनता पर बोझ डालना है।

Q. नगर निगम के निर्माण कार्यों में गुणवत्ता का ध्यान रखा गया?
जवाब: गुणवत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पांच साल में जितने भी निर्माण कार्य सड़क, पेचवर्क, नाली, क्रॉस आदि के कार्य हुए हैं, उनमें से 70 प्रतिशत भी हाल में ही सुरक्षित नहीं है।

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