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भरतपुर में मंदिर की जमीन पर लगाया मोबाइल टॉवर…बेच डाली बेशकीमती जमीन

-किला परिसर में कथित मंदिर की जमीन के नाम पर कॉलोनी विकसित करने का मामला

भरतपुरMay 14, 2024 / 08:20 pm

Meghshyam Parashar

लोहागढ़ किला परिसर स्थित श्रीकिशोरी मोहनजी की कथित जमीन पर सूर्यविहार कॉलोनी विकसित करने का मामला अब अफसरों की अनदेखी के कारण जांच में देरी की वजह हुआ है। क्योंकि अधिकारियों ने लंबे समय से दस्तावेजों को ही अवलोकन नहीं किया गया। इससे अब जांच कमेटी को भी दस्तावेज खंगालने में परेशानी उठानी पड़ रही है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पत्रिका ने सात मई के अंक में पुन्यार्थ जमीन, हितार्थ सौदा! शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर मामले का खुलासा किया था। इसके बाद 10 मई को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी ने एक भूखंड मालिक के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। राजस्थान पत्रिका की ओर से कच्चा परकोटा पर अतिक्रमण के संबंध में प्रकाशित की गई खबर के मामले में सात मई 2024 को जिला प्रशासन ने जांच कमेटी गठित की थी। इसमें जिला कलक्टर डॉ. अमित यादव ने जारी किए आदेश में कहा था कि राजस्थान पत्रिका में चार मई को प्रकाशित ‘किला परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दोहरा नियम कच्चा परकोटा की खुदाई पर छूट’ खबर पर नोटिस की जांच के लिए उपखंड अधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर निर्देशित किया जाता है कि कच्चा परकोटा पर हो रहे अतिक्रमण एवं मंदिर निर्माण के संबंध में जांच कर जांच रिपोर्ट 7 दिन में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अब जांच कमेटी को बनाए आठ दिन का समय गुजर चुका है, लेकिन अभी तक कमेटी किसी भी निष्कर्ष भी नहीं पहुंच सकी है। हालांकि कमेटी का भी मानना है कि इस मामले में पूर्व में कार्यरत संबंधित विभागों के तत्कालीन अधिकारियों ने रिकॉर्ड संधारण में काम नहीं किया। इससे अब दस्तावेजों को खंगालने में परेशानी आ रही है। इससे जांच में भी देरी हो रही है।
छह साल पहले नगर निगम ने दी एनओसी
यह मामला सामने आने के बाद भले ही वन विभाग कह रहा है कि उसकी जमीन पर कोई अतिक्रमण नहीं है। क्योंकि शिकायत नहीं आई है। देवस्थान विभाग कहता है कि मंदिर की जमीन का कोई विक्रय ही नहीं कर सकता है। नगर निगम के रिकॉर्ड में जमीन होने के बाद भी अब तक तमाम अधिकारी चुप्पी साधे रहे। जबकि नगर निगम की हर बैठक में सरकारी जमीनों का बेचान भूमाफियाओं की ओर से बेचान करने का मुद्दा उठता रहा है। अब यह भी सामने आया है कि छह वर्ष पहले एक भूखंड मालिक ने निजी कंपनी का मोबाइल टॉवर लगाने के लिए नगर निगम से एनओसी मांगी थी। नगर निगम ने दो महंतों के बीच आपसी समझौते की न्यायालय की डिग्री के आधार पर एनओसी दे डाली, लेकिन डिग्री का परीक्षण उस समय भी नहीं किया गया।
इनका कहना है
-यह मामला कुछ विभागों के रिकॉर्ड में फंसा हुआ है। कमेटी ने हरेक दस्तावेज को खंगालने में जुटी है। यह वर्तमान में कार्यरत किसी एक अधिकारी के कार्यालय में नहीं हुआ है। लंबे समय से यह मामला चल रहा था। मेरे प्रसंज्ञान में आने के बाद खुद मैंने ही कमेटी बनाई है। हमारा उद्देश्य है कि सरकारी जमीन को सुरक्षित किया जाए। ताकि आगामी समय में कोई भी व्यक्ति इस तरह के फर्जीवाड़ा या सरकारी जमीन की रजिस्ट्री नहीं करा सके। सभी विभाग जांच में सहयोग कर रहे हैं। इस कारण जांच में देरी हो रही है।
डॉ. अमित यादव
जिला कलक्टर

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