जुरहरा कस्बा निवासी शुभम का आरोप है कि जिंदल हॉस्पिटल में रात के समय मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। शुभम बताते हैं कि उनकी पत्नी पलक (29) को 30 सितम्बर की रात को जिंदल हॉस्पिटल में डिलेवरी के लिए भर्ती कराया गया। रात में ही मैंने आठ यूनिट ब्लड एवं चार यूनिट प्लाज्मा की व्यवस्था की। इसके बाद भी वह लगातार ब्लड लाने के लिए दवाब बनाते रहे। शुभम का आरोप है कि रात्रि को यहां तैनात स्टाफ कभी बच्चेदानी में दिक्कत बताने लगा तो कभी मथुरा ले जाने की कहने लगा। बाद में पलक को आईसीयू में ले गए। इस दौरान सात हजार रुपए पहले ही जमा करा लिए और बाद में करीब 12-13 हजार रुपए की दवा दे दी। शुभम ने बताया कि पलक का रात्रि को ऑपरेशन किया गया, लेकिन उस समय यहां विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं था। पलक की मौत के बाद सुबह शव देने में भी अस्पताल प्रशासन ने आनाकानी की। इसका विरोध करने पर उलटे मेरे खिलाफ ही अभद्र व्यवहार करने और तोडफोड़ की रिपोर्ट कराई गई। शुभम ने कहा कि अपनी कमी छिपाने के लिए हॉस्पिटल प्रशासन ने दो माह बाद मेरे खिलाफ तोडफ़ोड़ करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई। शुभम का आरोप है कि मुझे बार-बार पूछने पर भी अंत तक ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक का नाम तक नहीं बताया गया। मुझे शव भी पैसे लेने के बाद दिया गया।
शहर के जिंदल हॉस्पिटल में पिता का इलाज कराने वाले मोहनप्रकाश उर्फ कुक्कू ने बताया कि उनके पिता एदल सिंह (70) निवासी गिरधरपुर को इलाज के लिए भर्ती कराया गया। कुक्कू ने बताया कि 13 दिन में उनसे दो लाख 91 हजार रुपए वसूल किए गए। इस दौरान तीन सिटी स्केन की गईं, जिनके 15 हजार रुपए वसूले। कुक्कू ने आरोप लगाया कि अस्पताल में उनके पिता को सिर्फ ऑक्सीजन लगाई जा रही थी। इसके प्रतिदिन 15 से 20 हजार रुपए वसूल किए जा रहे थे। इसमें नौ हजार बेड सहित अन्य खर्चे जोड़ रखे थे। उन्होंने बताया कि बिल में निबूलाइजर की राशि अलग से जोड़ रखी थी, जबकि उनके पिता को एक भी दिन सिकाई नहीं दी गई। काफी जद्दोजहद के बाद अस्पताल प्रशासन ने बाद में यह राशि लौटाई। खास बात यह है कि अस्पताल प्रशासन ने हमें कागज भी पूरे नहीं दिए। पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया कि किसी ने इनकी शिकायत कर दी है, इसलिए बिल भी पूरे नहीं दिए जा रहे हैं।
बयाना के खेड़ली गड़ासिया निवासी कुलदीप उपाध्याय ने बताया कि पत्नी नीतू की सीटी स्कैन कराई तो तीन हजार रुपए लिए गए। जब बिल मांगा तो इंकार कर दिया। कई बार बिल मांगने पर भी कुछ नहीं बोले, बल्कि अभद्रता करने पर उतर आए। ऐसे में हमें वहां से वापस आना पड़ा। शिकायत भी करें तो किससे करें, क्योंकि जिन्हें शिकायत की जाएगी। उनकी सह पर ही तो यह सारा खेल चल रहा है। इतना ही नहीं जिस सरकारी डॉक्टर को मरीज दिखाया गया था उसने ही कृष्णा नगर में संचालित एक निजी हॉस्पिटल में सीटी स्कैन कराकर लाने को कहा था। चूंकि डॉक्टर को घर पर ही मरीज दिखाया था। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं कमीशन का खेल जुड़ा हुआ है।