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भिलाई

डेढ़ साल साल बाद आखिर BSP प्रबंधन ने माना, हां चढ़ा दिया था 8 साल के मासूम को HIV संक्रमित ब्लड

आठ साल के मासूम को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने के मामले में भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन ने अपनी गलती मान ली है।

भिलाईJan 13, 2018 / 11:14 am

Dakshi Sahu

patrika
भिलाई. डेढ़ साल बाद थैलेसीमिया बीमारी से पीडि़त आठ साल के मासूम को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने के मामले में भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन ने अपनी गलती मान ली है। प्रबंधन जीवन भर मासूम के इलाज का पूरा खर्च उठाने तैयार हो गया है।
राष्ट्रीय बाल संप्रेक्षण आयोग की फटकार के बाद ही प्रबंधन तैयार हुआ है। इससे पहले तक प्रबंधन अपनी जिद पर अड़ा हुआ था। जांच टीम के बहाने टालमटोल करता रहा। बीएसपी कर्मी थैलेसीमिया से पीडि़त अपने बेटे का पंडित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सेक्टर-9 में इलाज करा रहा था।
इसी दौरान 26 जून 2016 मासूम को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया। 1 जुलाई 2016 को खून जांच के दौरान एचआईवी पॉजीटिव मिलने पर सेक्टर-9 अस्पताल प्रबंधन की यह लापरवाही उजागर हुई। इसके बाद 4 जुलाई २०१६ को तत्कालीन कलक्टर आर. संगीता के आदेश पर बीएसपी प्रबंधन ने मासूम को आनन-फानन में फ्लाइट से मुंबई सायन हॉस्पिटल इलाज के लिए भेजा। तब से महानगरों के कई बड़े अस्पतालों में मासूम का इलाज चल रहा है।
सीएचएमओ डॉ. सुभाष पांडेय ने बताया कि विभिन्न जांच टीमों के मुताबिक बच्चा थैलेसीमिया से पीडि़त है। वह खून चढ़ाते समय एचआईवी पॉजीटिव नहीं था, लेकिन विंडो पीरियड में मिला है। बाल संप्रेक्षण आयोग से पत्र आया था कि बच्चे का पूरा इलाज खर्च बीएसपी प्रबंधन वहन करें। इसकी सूचना प्रबंधन को दी गई। प्रबंधन ने लिखित पत्र के माध्यम से उसे स्वीकार कर लिया है। अभी राज्य स्तरीय कमेटी की जांच रिपोर्ट नहीं मिली है।
इस तरह समझे पूरे घटनाक्रम को
21 जुलाई 2016 को दिल्ली से आए सेल डायरेक्टर डॉक्टर एसके गुप्ता ने जांच की। मगर उनकी जांच महज औपचारिकता रही।
18 जून 2017 को राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन की टीम आई थी। इसमें जिला प्रशासन दुर्ग , रायपुर और मुम्बई की संयुक्त टीम ने जांच की है। जांच अभी जारी है।
27 जुलाई 2017 एसडीएम दुर्ग जीआर मरकाम के साथ 4 सदस्यीय टीम ने जांच की थी।
8 अक्टूबर 2017 को जिला टीकाकरण अधिकारी डॉक्टर सुदामा चंद्राकर ने फ ाइल मंगाकर जांच की।
१३ दिसम्बर २०१८ को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की चार सदस्यीय उच्चस्तरीय प्रशासनिक टीम ने जांच की। डॉ मनीषा श्रीवास्तव, निकिता शेरवानी, विजय कापसे और खाद्य एवं औषधि नियंत्रक सहायक अधिकारी संजय झाड़ेकर शामिल थे।
बीएसपी प्रबंधन इलाज के साथ-साथ अन्य खर्च वहन करने में अनाकानी करता रहा है। पीडि़त मासूम के पिता मिन्नते करते रहे, लेकिन प्रबंधन ने कभी संवेदना नहीं दिखाई। 25 जुलाई 2016 को तत्कालीन छत्तीसगढ़ बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष शताब्दी पांडेय यहां जांच करने आई, लेकिन प्रबंधन ने उनके साथ भी अच्छा बर्ताव नहीं किया।

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