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भिलाई

Patrika parenting Today: खेल सिखाने से पहले बच्चों को दें माहौल, जीत-हार के बदले हर परिस्थिति से लडऩे करें तैयार

पत्रिका और सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज के पैरेंटिंग टुडे में खेल जगत से जुड़ी हस्तियों ने कहा कि भिलाई-दुर्ग में स्पोट्र्स का कल्चर है पर आज भी खेल में वही बच्चे आते हैं जो जरूरतमंद है।

भिलाईJul 02, 2018 / 02:07 pm

Dakshi Sahu

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Patrika parenting Today: खेल सिखाने से पहले बच्चों को दें माहौल, जीत-हार के बदले हर परिस्थिति से लडऩे करें तैयार

भिलाई. आज बच्चों को हर कोई सचिन तेंदुलकर या विराट कोहली बनाना चाहता है। पैरेंट्स इतने अवेयर है कि बच्चे को तीन से चार खेल में भेजते हैं और वे चाहते हैं कि वे सभी में गोल्ड जीत ले, पर यह नहीं जानते कि वे बच्चों को उस अंधी दौड़ में दौडऩे भेज रहे हैं जहां बच्चा केवल टार्चर ही होता है। बच्चों को स्पोट्र्स पर्सन जरूर बनाएं पर मेडल जीतने के लिए नहीं बल्कि अपनी जिंदगी में आगे बढऩे और हर परिस्थियों से लडऩे के लिए।
आज पैरेंट्स बच्चों को आइआइटी भेजने का सपना देखते हैं। पर अब उन्हें यह भी बताने की जरूरत है कि स्पोट्र्स भी उनके बच्चों को बेहतर कॅरियर दे सकता है। इन सबसे पहले जरूरी है कि हमें उनके लिए माहौल तैयार करना होगा ताकि उस माहौल को देखकर बच्चे अपनी मर्जी से खेलने ग्राउंड तक पहुंचे। पत्रिका और सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज के पैरेंटिंग टुडे में खेल जगत से जुड़ी हस्तियों ने कहा कि भिलाई-दुर्ग में स्पोट्र्स का कल्चर है पर आज भी खेल में वही बच्चे आते हैं जो जरूरतमंद है।
ऐसे बच्चों को आगे बढ़ाने शहर के उद्योगपतियों और समाजसेवियों को आगे आना चाहिए। इस अवसर पर पैरेटिंग एक्सपर्ट चिंरजीव जैन ने पैरेटिंग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि माता-पिता और शिक्षक के बाद अगर बच्चे के कोई करीब होता है तो वह है कोच या पीटीआई।
कोच को पता होता है कि बच्चे की क्या स्ट्रेंथ है और वह क्या कर सकता है। अब वक्त आ गया है कि स्कूलों में स्पोट्र्स कॅरियर पर बातें होनी चाहिए। कार्यक्रम में पत्रिका के स्थानीय संपादक नितिन त्रिपाठी एवं कॅरियर एक्सपर्ट डॉ किशोर दत्ता ने भी कोच एवं खेल संघों के पदाधिकारियों के कई सवालों का जवाब दिए।
पैरेंट्स की उम्मीदें ज्यादा
स्पोट्र्स एक्सपर्ट ने बताया कि ट्विनसिटी के जो पैरेंट्स स्पोट्र्स को लेकर जागरूक हैं उन्हें अपने बच्चों से उम्मीदें कुछ ज्यादा है। सभी चाते हैं कि उनका बच्चा गोल्ड मेडल ही लेकर आए। पर ऐसा नहीं है। कोच केवल उन्हें सिखा सकता है, जब बच्चे कुछ समय तक बेस्ट नहीं कर पाते तो कई बार पैरैंट्स बच्चों का गेम भी बदल देते हैं। इससे बच्चा कहीं का नहीं रह जाता। एक्सपर्ट ने कहा कि दबाव बनाने की बजाए पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को मनचाहा गेम चुनने दें ताकि बेहतर रिजल्ट सामने आए।
पैरेंट्स को समझना होगा कि रातोरात सफलता नहींं मिलती। खेल जैसी विधा में अचीवमेंट आने में सालों लग जाते हैं।
पत्रिका और सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज के पैरेटिंग टु डे में खेल जगत की अन्य हसित्यों ने भी कई बेहतरीन सुझाव दिए। इनमें क्रिकेट से संजीव श्रीवास्तव, पावर लिफ्टिंग से पवन यादव, कबड्डी के राघवेन्द्र प्रताप सिहं, आरयन गेम से महेन्द्र कुमार टेकाम, सुनील वैष्णव,कुश्ती से ललित कुमार साहू, क्रिकेट से के राजगोपालन, अनिल सिंह, पावर लिफ्टिंग से प्रिंस पियूष टंडन, संजय तांडी, वीजेन्द्र कुमार, वॉलीवाल से परिवेश ठाकुर, स्विमिंग से महेश बिसाई, हॉकी से अल्ताफ अली शामिल थे।
सचिव छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सचिव नंदलाल चौधरी ने बताया कि खेल एक जरिया है आगे बढऩे का और अपराध से दूर रहने का। बाल अपराधों के आंकड़े जो लगातार बढ़ रहे हैं उसके पीछे कहीं न कही खेल मैदान से उनकी दूरी ही है।
कम उम्र में इंटरनेट की लत उन्हें अपराध के रास्ते पर ले जा रही है। जिससे दूर रखने उन्हें खेल से जोडऩा जरूरी है। बैडमिंटन कोच संगीता राजगोपालन ने बताया कि आज भी लोग बच्चों को खेल में नहीं भेजना चाहते, पर वे नहीं जानते कि एक खिलाड़ी कभी गलत रास्ते पर नहीं जाएगा। जीत हार अलग बात हैं पर वह अच्छा इंसान जरूर बन जाता है
खेल एक्सपट्र्स ने कहा कि खेल में 90 प्रतिशत बच्चे वही आते हैं जो जरूरतमंद है। उनके पास टैलेंट तो है पर अच्छी डाइट नहीं है। खेलने के लिए अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। बीएसपी के 50 साल पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर में आज भी कोई बदलाव नहीं हुआ। ऐसे में जरूरी है कि शासन-प्रशासन के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर में उद्योगपति भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाएं और खेलों को आगे बढ़ाएं।
कॅरियर एक्सपर्ट डॉ किशोर दत्ता ने कहा कि आज भी पैरेंट्स जब बच्चों के कॅरियर के बारे में पूछते हैं तो केवल डॉक्टर, इंजीनियर को ही फोसक करते हैं। कम ही ऐसे होते हैं जो खेल से जुड़े कॅरियर को जानना चाहते हैं। खेल में अब साइंस और टेक्नोलॉजी आ चुकी है। सभी गेम प्रोफेशनल हो चुके हैं।
ऐसे में एक स्पोट्र्स पर्सन के पास सर्टिफिकेट कोर्स से लेकर डिग्री डिप्लोमा तक के ऑप्शन हंै। स्पोट्र्स में भी मैनेजमेंट आ चुका है और फिजियोथैरेपिस्ट के बिना टीम पूरी नहीं होती। बस जरूरत है बच्चों और पैरेंट्स को यह बात समझाने की, कि खेल से बच्चे बिगड़ेंगे नहीं बल्कि उनका बेहतर कॅरियर बनेगा।
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