इस प्रोजेक्ट के तहत करंज के पत्ते के रस से तैयार लिक्विड पर शोध किया जाना था। जब इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से हुई तब आनन फानन में मशीन तैयार कर वन औषधि बोर्ड को दे दी गई। इस मशीन का भी कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। करंज के पत्ते के रस से अमरीक सिंह ने लिक्विड तैयार किया था। इसी हर्बल को वह फागिंग मशीन में इस्तेमाल के लिए शोध कार्य का प्रस्ताव वनऔषधि बोर्ड को दिया था। बोडऱ् ने यह प्रस्ताव मंजूर कर प्रोजेक्ट पर काम की जवाबदारी बीआईटी दुर्ग को सौंपी थी।
शोध में पेस्ट कंट्रोल के विशेषज्ञ अमरीक सिंह को शामिल कर उसकी मशीन के बारे में अपग्रेडेशन करना था। शोध कमेटी ने अमरीक सिंह को ही प्रोजेक्ट से बाहर निकाल दिया। बाद में बाजार से मशीन खरीदकर काम को पूरा कर दिया गया। जबकि बोर्ड ने शोध समिति में भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी के उप प्राचार्य डॉ. अरुण सिंह अरोरा, रसायन विभाग के डॉ.संतोष सार, यांत्रिकी विभाग के दीपक महापात्रा और शोधकर्ता अमरीकसिंह को शामिल किया था।
एक साल के हर्बल मास्किटो मशीन एवं लिक्विड पर अनुसंधान कार्य के प्रोजेक्ट को पूरा करने में तीन साल लगा दिए। वनौषधि बोर्ड ने २००८ में हर्बल मॉस्किटो मशीन/फागर का डिजाइन और डेवलपमेंट के लिए तीन लाख रुपए का प्रोजेक्ट तैयार किया था। बोर्ड ने भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (बीआईटी)दुर्ग को हर्बल मास्किटो मशीन एवं लिक्विड पर अनुसंधान का कार्य सौंपा था। इस प्रोजेक्ट को २००९ में पूरा कर बोर्ड को सौंपा जाना चाहिए था। जिसे तीन साल बाद २०११ में सौंपा गया।
अमरीक सिंह ने इस मामले में मुख्यमंत्री डॉ. रमन से शिकायत की। इसके बाद आनन-फानन में मॉस्किटो रिपलेंड मशीन तैयार कर बोर्ड को सौंपा गया। शिकायतकर्ता का कहना है कि सालभर में जब प्रोजेक्ट पूर्ण नहीं हुआ, तब राज्य वनौषधि बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने ८ अप्रेल २००९ को बीआईटी के प्राचार्य सहित समिति को पत्र लिखा। प्रोजेक्ट के लिए किश्तों में दी गई (तीन लाख) राशि की खर्च की जानकारी मांगी थी। तब शोधकर्ता को पता चला कि प्रोजेक्ट पर कुछ काम नहीं हुआ है और राशि भी खर्च हो गई है।
बीआईटी रसायन विभाग के एचओडी डॉ संतोष सार ने बताया कि हर्बल मास्किटो मशीन तैयार करने का प्रोजेक्ट दिया था। हमने वनौषधि बोर्ड को मशीन तैयार कर दे दिया है। मशीन को पैटेंट कराना और शोध बोर्ड का काम है, हमारा नहीं।