वर्ष 2013 में विजयसिंह पथिकनगर निवासी नम्रता सैनी का निरंजन मालाकार से नाता विवाह हुआ था। एक माह तक उसके साथ अच्छा व्यवहार हुआ। उसके बाद दहेज में दो लाख रुपए व कार के लिए उसे प्रताडि़त किया जाने लगा। ससुर, देवर व ननद समेत अन्य लोग मारपीट करते व उसे भूखा रखा जाता था। मारपीट कर नम्रता से जबरन खाली कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए। दहेज नहीं देने पर उसे पागल करार देने तक की धमकी दी गई। नम्रता को १५ दिसम्बर 2013 को घर से निकाल दिया गया। इस पर उसने महिला थाने में दर्ज कराया था।
वर्ष-2014 में नम्रता ने वादमित्र राजेश शर्मा के मार्फत पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए अर्जी लगाई। निरंजन ने भी 2015 में नम्रता को साथ रखने की डिक्री पारित करने के लिए प्रार्थना पत्र पेश कर दिया। न्यायाधीश भार्गव ने मामले की सुनवाई करते हुए दोनों के प्रार्थना पत्रों को खारिज करते नाता विवाह को शून्य और प्रारंभ से ही अकूत करार दिया।
इसलिए माना गया एेसा
अदालत ने फैसले में उल्लेख किया कि नम्रता का पहले पति से कानूनी रूप से कोई विच्छेद नहीं हुआ था। महज स्टाम्प पर लिखा-पढ़ी कर विच्छेद मान लिया गया। उसके बाद स्टाम्प पर ही लिखा-पढ़ी कर नाता विवाह कर लिया गया। पहला पति जिंदा होते हुए बिना तलाक के नम्रता का विवाह मान्य नहीं हो सकता। निरंजन ने भी सुनवाई के दौरान उसकी पहली पत्नी से हुए तलाक के कागज पेश किए। एेसे में हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत नाता विवाह जायज नहीं है।