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घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई एक जिला, एक उत्पाद की ब्रांडिंग, बड़े निवेशक नहीं

locationभिंडPublished: Apr 20, 2023 03:41:04 pm

Submitted by:

Ravindra Kushwah

एक जिला-एक उत्पाद योजना में, सरसों को शामिल करने के बावजूद औद्योगिक गतिविधियां बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई है। यही वजह है कि बंपर उत्पादन के बावजूद जिले में महज 6 बड़ी और ब्रांडेड तेल उत्पादक इकाइयां हैं। हालांंकि जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र में छोटी-बड़ी इकाइयों की संख्या 253 के करीब है। बड़ी इकाइयों के लिए मार्केट की सहज उपलब्धता नहीं है, ऐसे में लोग बड़ा निवेश करने से कतराते हैं।

घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई एक जिला, एक उत्पाद की ब्रांडिंग, बड़े निवेशक नहीं
सरसों का तेल निकालने के लिए स्थापित एक्सपेलर।
रवींद्र सिंह कुशवाह, भिण्ड. जिले में सरसों की खेती और उत्पादन संभाग के सभी जिलों की तुलना में अधिक होता है। बीते साल जहां 2.22 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती हुई थी, वहीं इस साल भी 2.15 लाख हेक्क्टेयर में सरसों की बोवनी किसानो ने की थी। आधा दर्जन मंडियों में हर साल औसतन 10 हजार मीट्रिक टन के करीब ही सरसोंं की खरीद होती है। बाकी सरसों किसान व्यापारियों को सीधे या खुले बाजार में औने-पौने दामों में जरूरतें पूरी करने के लिए बेच देते हैं। प्रशासन को सरसों की इकाइयां बढ़ाने और ब्रांडिंग करने के लिए जो प्रयास करने चाहिए थे, वह नहीं हो पा रहे हैं। जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र के अधिकारी इसका मूल कारण रोड एवं रेल कनेक्टिविटी की मुख्य धारा न होना मानते हैं। क्योंकि यहां से सीधी कनेक्टिविटी किसी महानगर से नहीं है।
40 प्रतिशत ही तेल और खली उत्पादन में उपयोग
जिले में औसतन पांच लाख मीट्रिक टन सरसों का उत्पादन हर साल होता है। इसमें से महज दो लाख मीट्रिक टन सरसों का उपयोग तेल एवं खली उत्पादन में होता है। बाकी तीन लाख मीट्रिक टन सरसों किसान और सरसों उत्पादक खुले बाजार में और समीपस्थ अन्य जिलों में भाव के आधार पर बेच देते हैं। हालांकि विभाग का दावा है कि जिले में छोटी-बड़ी करीब 253 तेल उत्पादक इकाइयां स्थापित हैं और इनमें करीब 50 करोड़ रुपए का निवेश भी किया गया है। लेकिन बड़ी इकाइयां ज्यादा न होने से महज 1650 युवाओं को ही रोजगार प्रदान किया जा सका है। इनमें भी 240 सूक्ष्म एवं 13 लघु औद्योगिक इकाइयां हैं।
70 हजार मीट्रिक टन तेल उत्पादन होता है
जिले में स्थापित औद्योगिक इकाइयों से सालाना औसतन 70 हजार मीट्रिक टन तेल का उत्पादन होता है। जबकि खली का उत्पादन 1.10 लाख मीट्रिक टन के आसपास होता है। अब प्रशासनिक स्तर पर जिले में 13 में से छह लघु औद्योगिक इकाइयों में तेल और खली उत्पादन की क्षमता विस्तार और चार नवीन स्थापना की कवायद की जा रही है। इनमें से एक इकाई ही स्थापित हो पाई है। बाकी के लिए निवेशक सामने नहीं आ रहे हैं।
ऑयल मिल क्लस्टर पर कवायद भी सुस्त
जिले में सरसों की बंपर खेती और उत्पादन को ध्यान में रखकर ऑयल मिल क्लस्टर का भी प्रस्ताव है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग, भारत सरकार की इस योजना में क्लस्टर विकास के लिए पांच एकड़ भूमि की तलाश नहीं हो पा रही है। इसमें न्यूनतम 20 इकाइयां प्रस्तावित की जाती हैं। इसमें 20 करोड़ रुपए का निवेश भारत सरकार द्वारा किया जाता है। जिसमें मप्र सरकार करीब ढाई करोड़ का अनुदान भी देती है। इस योजना में 28 इकाइयां स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। 2021 में इसकी कवायद के बाद स्थापना 2022-23 में ही होनी थी। विभाग ने इसके लिए कुछ कार्यशालाओं के अलावा कोई ठोस प्रयास नहीं किया। ऑनलाइन मार्केटिंग साइट पर भी इन उत्पादों को ले जाना था, लेकिन अभी कार्यशालाओं का ही दौर चल रहा है। जिला उद्योग केंद्र भिण्ड में एक साल पहले ही बैठक हुई थी, उसके बाद की गतिविधियंों की जानकारी लोगों को नहीं है।
फैक्ट फाइल-
2.75 लाख के करीब किसान करते हैं सरसों की खेती।
2.22 लाख हेक्टेयर बोवनी हुई थी वर्ष 2021में।
2.15 लाख हेक्टेयर बोवनी हुई थी वर्ष 2022 में।
4.49 लाख मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन हुआ था बीते साल।
30 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है जिले में प्रदेश का।
कथन-
हम बड़ी तेल मिल लगाना चाहते हैं, लेकिन उद्योग विभाग और बैंकों के बीच समन्वय के अभाव में लोन नहीं हो पा रहा है। बेटा बेरोजगार है, उसे कारोबार करवाना चाहते हैं, लेकिन विभाग कहता है बैंक से स्वयं फाइनेंस करवाओ।
हवलदार सिंह, मिनी तेल मिल संचालक, भिण्ड।
-सरसों की खेती व उत्पादन अधिक होने के बावजूद अपेक्षित कारोबार नहीं हो पा रहा है। मुरैना सरसों के तेल उत्पादन का हब बन गया, लेकिन भिण्ड में अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। यहां से निर्यात के लिए उचित व्यवस्था नहीं होने से भी समस्या आती है।
रामवीर सिंह, लघु तेल मिल इकाई संचालक।
-रोड एवं रेल कनेक्टिविटी की अच्छी लोकेशन पर होने से मुरैना को लाभ मिला है। पहले तो जो सरसों का उत्पादन हो रहा है, उससे तेल और खली उत्पादन की क्षमताएं बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। अटेर घाट पर चंबल का नया पुल बनने के बाद आगरा व दिल्ली के लिए सीधी कनेक्टिविटी के बाद सुधार होने की उम्मीद होगी। जब सरसों का पूरा उपयोग होने लगेगा तो उत्पादन, किसानों की संख्या के साथ क्षेत्र विस्तार पर भी कवायद करेंगे।
बीएल मरकाम, महाप्रबंधक, जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र, भिण्ड।
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