मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों के मामले में एक दूसरे की सहमति लेना अनिवार्य है। यदि एक राज्य की सहमति नहीं होगी तो वेतनमान, पेंशन या डीए के मामले अटके रहेंगे। इसके लिए छत्तीसगढ़ विभाजन के समय राज्य पुनर्गठन एक्ट लागू किया गया था। कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं पर 67 प्रतिशत खर्च मध्यप्रदेश करता है, जबकि 33 फीसदी छत्तीसगढ़ राज्य उठाता है। इसके लिए दोनों सरकारी बजट से राशि लेते हैं। मध्यप्रदेश में पेंशनर्स के फैसले में देरी के कारण छत्तीसगढ़ राज्य के पेंशनर्स को इंतजार करना पड़ता है, इसी प्रकार मध्यप्रदेश में कोई भी वेतन,भत्ते लागू करने से पहले छत्तीसगढ़ की भी सहमति आवश्यक रखी गई है।
-मध्यप्रदेश में शिक्षाकर्मियों के संविलियन की घोषणा होने के बाद छत्तीसगढ़ में संविलियन का रास्ता खुल गया है। छत्तीसगढ़ राज्य की हाईपॉवर कमेटी ने एक लाख 80 हजार शिक्षाकर्मियों के संविलियन का खाका तैयार कर लिया है।
-कमेटी फिलहाल मध्यप्रदेश के नियमों का अध्ययन करेगी, फिर ड्राफ्ट पर सीएम रमन सिंह के अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा।
छत्तीसगढ़ में खुशी की लहर
शिक्षाकर्मियों के संविलियन पर जल्द ही छत्तीसगढ़ में भी फैसला होने वाला है। तय समय पर हाईपावर कमेटी ने ड्राफ्ट तैयार कर लिया था, लेकिन मध्यप्रदेश का इंतजार किया जा रहा था। मध्यप्रदेश के सात ही छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियों को 22 साल से संविलियन का इंतजार था।
मप्र के अध्यापक अब सरकारी कर्मचारी कहलाएंगे
-किसानों के बाद सरकार ने अधिकारियों-कर्मचारियों को साधने के लिए खजाना खोला है। एक साथ एक ही बैठक में पांच लाख से ज्यादा कर्मचारियों की वर्षों से लंबित मांगों को पूरा करने का फैसला ले लिया गया है।
-एमपी में 2.37 लाख अध्यापकों को खुश किया गया। उनका शिक्षा विभाग में संविलियन कर दिया गया है। अब वे सरकारी कर्मचारी माने जाएंगे। इसके साथ ही उन्हें दोहरी खुशी सातवें वेतनमान ने भी दे दी है। सभी सरकारी शिक्षकों को 1 जुलाई 2018 से सातवां वेतनमान का लाभ दे दिया जाएगा। इसके साथ ही संविदा कर्मचारियों को हटाया नहीं जाएगा। उनका संविदा पीरियड बढ़ाया जाएगा। राज्य सरकार के इस फैसले से लगभग 2 लाख 37 हजार अध्यापकों को लाभ होगा।