15 अगस्त 1947 को हमें अंग्रेजों से तो मुक्ति मिल गई लेकिन अन्य चुनौतियां खड़ी हो गईं थीं। पड़ौसी देश हम पर हावी होना चाहते थे और इसके लिए हमें बार—बार युद्ध में भी झोंका गया। हालांकि हर संघर्ष में हमारे रणबांकुरों ने गजब के शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए दुश्मनों के इरादे पूरे नहीं होने दिए। ऐसा ही एक युद्ध 1965 में हुआ जब पाकिस्तान एकाएक हमलावर बन गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना और सैनिकों ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि यह विश्व इतिहास के सबसे चर्चित संघर्षों में शामिल हो गया. दुनिया में जब भी दो देशों के बीच हुए युद्ध की बात की जाती है तब 1965 के भारत-पाक युद्ध की चर्चा भी जरूर होती है।
1965 का यह युद्ध भारतीय सैनिकों की वीरता और बहादुरी की अद्भुत दास्तां है। पाकिस्तान तब पूरी तैयारी से आया था. उसके पास हमसे कई गुना बेहतर हथियार थे। उसने जोरदार हमला किया था लेकिन हमारे सैनिकों की रग-रग में भरे राष्ट्रवाद ने ऐसा जवाब दिया कि पाकिस्तान चारों खाने चित्त हो गया। उसने हमें अमेरिका के बल पर नीचा दिखाने की कोशिश की थी। पाकिस्तान ने अमेरिकी पैटन टैंक से हम पर हमला किया पर हमारी सेना ने साधारण बंदूकों से ही इन टैकों को तबाह कर दिया था।
दुश्मन ने खेमकरण सेक्टर के असल उताड गांव पर पैटन टैंकों से हमला किया तब
भारतीय सैनिक अब्दुल हमीद के पास गन माउनटेड जीप थी. उन्होंने अपनी आरसीएल गन से ही पाकिस्तान के आठ पैटन टैंक तबाह कर डाले लेकिन घायल हो जाने से बाद में उनकी मौत हो गई। उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
भारतीय सैनिक अब्दुल हमीद के पास गन माउनटेड जीप थी. उन्होंने अपनी आरसीएल गन से ही पाकिस्तान के आठ पैटन टैंक तबाह कर डाले लेकिन घायल हो जाने से बाद में उनकी मौत हो गई। उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
खास बात यह है कि अब्दुल हमीद की बहादुरी की मिसाल बनी इस गन से मध्यप्रदेश का खास कनेक्शन है। पाक पैंटन टैंकों को उड़ा देनेवाली हमीद की यह गन मध्यप्रदेश के जबलपुर के आर्मी सेंटर में यादगार के तौर पर रखी गई है। इस गन का कई बार सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाता है और तब इसे देखने के लिए लोगों का तांता लग जाता है। इस गन के पिछले हिस्से से बारूद का गोला लोड किया जाता था। इसकी मारक क्षमता आगे 5000 मीटर तथा पीछे 50 मीटर होती थी।