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भोपाल

कलेक्टर-तहसीलदार के दखल से नाखुश हैं अस्पताल संचालक, क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट में गिना रहे खामियां

नए एक्ट पर सवाल: नर्सिंग होम्स संचालकों की आपत्ति को देखते हुए शासन कर सकता है कुछ बदलाव

भोपालDec 04, 2019 / 01:27 am

Ram kailash napit

Clinic stabilization act

Clinic stabilization act

भोपाल. क्लीनिक स्टेब्लिशमेंट एक्ट में नर्सिंग होम्स के रजिस्ट्रेशन का अधिकार सीएमएचओ की बजाय कलेक्टर के पास होगा। नर्सिंग होम संचालक और डॉक्टरों की आपत्ति है कि प्रशासन चिकित्सा क्षेत्र की बारीकियां नहीं समझ सकते। ऐसे में वे गैरजिम्मेदाराना रवैया अपना सकते हैं। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने क्लीनिक स्टेब्लिशमेंट एक्ट पारित किया है, जिसे मप्र सरकार अभी तक लागू नहीं कर पाई है। हाल ही में उच्च स्तरीय बैठक में नर्सिंग होम संचालकों ने एक्ट के कई बिंदुओं पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद एक्ट में बदलाव पर सहमति बनी थी। बताया जा रहा है कि इस सप्ताह फिर बैठक हो सकती है।
इन वजहों से हो रहा विरोध: एक्ट में कई प्रावधान हैं, जिनसे निजी अस्पतालों, डॉक्टरों व नर्सिंग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा। जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं ज्यादा सुलभ और सस्ती हो जाएंगी। एक्ट के तहत सभी अस्पतालों, क्लीनिक, नर्सिंग होम्स और डॉक्टरों के अलावा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी संस्थाओं को पंजीयन करना होगा। उपचार संबंधी सेवा का शुल्क भी अस्पतालों की श्रेणी के हिसाब से होगा।
इन प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं डॉक्टर
-सेक्शन 12(2) में प्रावधान है कि यदि रोगी इमरजेंसी में अस्पताल आता है तो उसे वो सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी, जिससे रोगी को स्टेबल किया जा सके। कानून में इसका जिक्र नहीं है कि इलाज का खर्च कौन उठाएगा।
-आईपीसी में लापरवाही से मौत पर दो साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन नए एक्ट में सात साल की जेल का प्रावधान है।
-लापरवाही सामने आने पर नर्सिंग होम पर एक करोड़ का जुर्माना लगाया जाएगा। इसे तय करने के मापदंड स्पष्ट नहीं किए गए।
-मरीजों को दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की दर डॉक्टर की बजाय सरकार तय करेगी।
मरीजों के हित में ये कानून बेहद जरूरी है। इससे कई आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगेगी। सही काम करने वाले अस्पतालों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।
अमूल्य निधि, राष्ट्रीय संयोजक, जन स्वास्थ्य अभियान, मप्र
नए एक्ट से मरीजों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। इसमें जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन ये उनके लिए है जो गड़बड़ी कर रहे हैं। हालांकि जुर्माने को कम करने पर सहमति बन गई है।
प्रो. तपन मोहंती, डीन, एनएलआईयू, भोपाल
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