प्रश्नकाल के दौरान आमतौर पर 15-16 सवालों पर ही चर्चा हो पाती है। जबकि 25 सवालों के लिए यह समय निर्धारित रहता है। ऐसे बहुत ही कम मौके आते हैं जब सभी 25 सवाल पूछे जा सके हों, जब-जब ऐसा हुआ तब-तब संसदीय कार्य मंत्री या फिर अन्य विधायकों की ओर से आसंदी को धन्यवाद भी दिया गया।
सदन में कई मौके ऐसे आए जब हंगामा और शोर-शराबा के चलते महत्वपूर्ण विधेयक भी बिना चर्चा के पारित हो गए। यहां तक राज्य का बजट भी कई बार बिना चर्चा के पारित हो गया। विधेयकों पर चर्चा होगी तो विधायकों के बेहतर सुझाव भी आएंगे। इससे कानून अच्छे से अच्छे कानून बन सकेंगे। जनहित के मामले में निर्णय लिए जा सकेंगे।
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना है कि पहली बार चुनकर आए विधायकों में कई बार झिझक होती है। वे भी सवाल पूछें, इसलिए उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एक दिन निर्धारित किया जाएगा। निर्धारित किए गए दिन में प्रश्नकाल के दौरान सिर्फ नए विधायकों को ही सवाल पूछने का मौका दिया जाएगा। इसी सत्र में यह व्यवस्था करने जा रहे हैं।
विधायकों के सवाल पूछने के मामले में नियमों में भी संशोधन किया गया है। इसके तहत यदि किसी सदस्य ने विधायक के तौर पर सवाल पूछे और इस बीच वह मंत्री या फिर विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बन जाता है तो उसके द्वारा पूछे गए लिखित सवाल सदन के पटल पर नहीं रखे जाएंगे। ये सवाल निरस्त कर दिए जाएंगे या फिर इन्हें निरस्त माना जाएगा। सरकार के मंत्री की ओर से इनके जवाब भी नहीं दिए जाएंगे। इसके लिए मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के स्थाई आदेशों में संशोधन करते हुए विधायकों को इसकी सूचना भेज दी गई है।
– गिरीश गौतम, अध्यक्ष मध्यप्रदेश विधानसभा