हम बात कर रहे हैं राजा दिग्विजय सिंह की। 1977 में जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश था तब दिग्विजय सिंह ने राघोगढ़ से चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बने। 1980 में भी दोबारा विधायक बने और अर्जुन सिंह के सरकार में मंत्री भी बने। इसके बाद उन्होंने 1984 में पहली बार राजगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद बने। उसके बाद 1991 में भी दोबारा सांसद बने।
सियासी करियर के ठीक 16 बाद 1993 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश की कमान सौंपी और उन्हें यहां के 14वें मुख्यमंत्री बनाया गया। दिग्विजय सिंह लगातार दो टर्म तक यहां के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन 2003 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के उस वक्त 230 में से मात्र 38 सीट से संतुष्ट होना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में हार के बाद दिग्विजय सिंह ने राज्य की राजनीति से खुद को दूर कर लिया और दिल्ली में डेरा जमा लिया। उसके बाद उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा।
ठीक 16 साल बाद यानि 2019 में दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे और
भोपाल लोकसभा सीट से ताल ठोक दी। यहां से उनके सामने भाजपा की
साध्वी प्रज्ञा थीं। बदले हालात में दिग्विजय सिंह ने भी नहीं सोचा होगा कि भारी आक्रोश के बीच सियासी करियर की शरुआत करने वाला मोदी की आंधी में उड़ जाएगा। साध्वी ने दिग्विजय सिंह को यहां से भारी अंतर से हरा दिया। दिग्विजय सिंह को 5,01 279 वोट मिले, वहीं साध्वी प्रज्ञा को 8,65, 212 मत प्राप्त हुआ।