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MP में सरकार को बचाने की कवायद शुरु! कमलनाथ के इस नए फैसले से गर्माई राजनीति

समीक्षा के दौरान मंत्रियों ने गिनाए कारण…

भोपालMay 26, 2019 / 11:10 pm

दीपेश तिवारी

kamalnath govt

MP में सरकार को बचाने की कवायद शुरु! कमलनाथ के इस नए फैसले से गर्माई राजनीति

भोपाल। राहुल गांधी से मुलाकात के बाद वापस लौटे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्य में विधायकों को नई जिम्मेदारी सौंपी है। इस जिम्मेदारी के तहत मंत्री पांच-पांच विधायकों पर नजर रखेंगे और उनसे लगातार संवाद भी करेंगे।
यह पूरी प्रक्रिया लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद हुई। ऐसे में अब कमलनाथ के इस फैसले को लेकर तरह तरह की बातें उठनी शुरू हो गईं हैं।

वहीं निर्दलीय विधायकों से कमलनाथ ने खुद चर्चा करने का फैसला लिया है। दूसरी ओर, कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राज्य के हालातों पर दो बार मंथन किया।

जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के गिरने-गिराने की अटकलों के बीच एक ओर जहां पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कांग्रेस में अंतर्कलह की ओर इशारा किया। वहीं, दूसरी ओर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने विधायकों के बगावती तेवर की आशंका पर यह कदम उठाने का फैसला लिया है।

kamal nath govt in mp

इसके अलावा कमलनाथ ने मंत्रियों से कर्ज माफी का फायदा नहीं मिलने को लेकर भी प्रश्न किए। जिस पर मंत्रियों ने कहा मोदी के आगे जनता ने कुछ नहीं सुना। इस पर कमलनाथ ने कहा कि वे कार्यकर्ता और जनता के कामों को प्राथमिकता दें। फोन ना उठाने जैसी समस्याएं सामने ना आए। वहीं समस्याओं की निगरानी के लिए निगरानी तंत्र विकसित करने की बात भी मंत्रियों से कहीं।
इसके अलावा MP में हार के कारणों पर समीक्षा में मंत्रियों ने मोदी फैक्टर और राष्ट्रवाद को सबसे बड़ी वजह बताया।

 

 

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कांग्रेस
निगरानी किसकी और क्यों?
कमलनाथ के इस नए फैसले को लेकर हो रही तमाम चर्चाओं के बीच राजनीति के जानकार डीके शर्मा का कहना है कि इस फैसले से ऐसा दिखता है कि कांग्रेस भी सरकार के बने रहने की स्थिति को लेकर संशय में है, जिसके चलते सरकार ने अपने को बचाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए है।
इसके तहत हर मंत्री पांच-पांच विधायकों पर नजर रखेगा, यानि कहीं न कहीं विधायकों के टूटने का डर बना हुआ है। शर्मा के अनुसार वैसे ये भी हो सकता है कि इसके तहत कमलनाथ ये देखना चाह रहे हों कि कौन सा विधायक जनता के लिए कितना काम कर रहा है या उनकी योजनाओं को जनता तक कितना ले जा रहा है।
लेकिन इसमें निर्दलीयों से चर्चा करने वाली बात आसानी से गले नहीं उतरती है। शर्मा के अनुसार भले ही कमलनाथ ने ये कदम किसी भी कारणवश उठाया हो, लेकिन इससे सरकार के संकट की बातों को लेकर चर्चा आम होना स्वाभाविक ही है।

वहीं कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि चुकिं निर्दलीयों की नाराजगी लगातार सामने आती रही है, इसलिए उनसे चर्चा जरूरी है। इस पर शर्मा का कहना है यदि ऐसा है तो मतलब साफ है ये व्यवस्था सरकार को बचाने के लिए ही है, ताकि निर्दलीय नाराज होकर पाला न बदल लें।
kamal nath order

कई बार सामने आ चुकी है निर्दलीयों की नाराजगी…
चर्चा है कि मंत्रिमंडल के गठन के बाद से ही सरकार में जगह न पाने वाले पार्टी के वरिष्ठ विधायक और बाहर से सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों की नाराजगी समय-समय पर सामने आती रही है।

इसके अलावा मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राज्य के हालातों पर दो मर्तबा मंथन किया। साथ ही जो सूचना सामने आ रही है उसके अनुसार जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार और निगम-मण्डलों में नियुक्तियों पर भी फैसला किया जाएगा।

मंत्रिमंडल में वरिष्ठ विधायकों में छह बार के विधायक केपी सिंह, बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंसाना और राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव को जगह नहीं मिल पाई थी। वहीं, निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह ठाकुर और केदार सिंह डाबर भी मंत्रिमंडल में जगह मिलने की उम्मीद जता रहे हैं। इधर, बसपा विधायक संजीव सिंह कुशवाहा और सपा के राजेश शुक्ला को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा है।

लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल विस्तार कब होगा, यह तय नहीं है। फिलहाल कमलनाथ कैबिनेट में मुख्यमंत्री समेत अन्य 28 मंत्री हैं। ऐसे में मंत्रिमंडल में छह विधायक और शामिल किए जा सकते हैं।

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