प्रदेश मेें अब गुलियन बैरी सिंड्रोम (जीबीएस) नया खतरा बन रहा है। बोलचाल की भाषा में इसे नसों का लकवा कहते हैं। यह ऐसा रोग है, जिसमें शरीर का तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो जाता है।
इंदौर के एमवाय अस्पताल में पिछले कुछ माह से इससे ग्रस्त कई रोगी खासी संख्या में आ रहे हैं. रिकार्ड के अनुसार पिछले कुछ दिनों में ही इस रोग के तीन रोगी अस्पताल आ चुके हैं।
परेशानी की बात यह है कि इसका वायरस तेजी से फैलता है लेकिन सरकारी अस्पताल में भर्ती रोगियों को इलाज में कोई मदद नहीं मिल पा रही है। दरअसल इस रोग के उपचार में लगने वाला इंजेक्शन सरकारी अस्पताल में नहीं मिलता है। रोगियों या उनके परिजन को बाजार से इसका प्रबंध करना पड़ता है जोकि बहुत महंगा पड़ रहा है। इसमें मरीज को इम्यूनोग्लोबुलिन के इंजेक्शन लगते हैं जिसका एक इंजेक्शन करीब 8 हजार रुपये में आता है। इसके औसतन 12 से 18 इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इस तरह एक मरीज के इलाज में सवा से डेढ़ लाख रुपए तो मात्र इंजेक्शन में लग जाते हैं।
एमजीएम मेडिकल कालेज इंदौर के डीन डा. संजय दीक्षित के अनुसार गुलियन बैरी सिंड्रोम के इलाज में लगने वाले इंजेक्शन बाजार से खरीदना पड़ते हैं। दीक्षित के अनुसार ये इंजेक्शन आयुष्मान योजना में शामिल नहीं है जिसकी वजह से अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं. उनका कहना यह भी है कि इन इंजेक्शन को सरकार को आयुष्मान में शामिल कर लेना चाहिए.
ये है प्रमुख लक्षण
गुलियन बैरी सिंड्रोम (जीबीएस) से शरीर का तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। आम बोलचाल में इसे नसों का लकवा कहते हैं। इस रोग का प्रमुख लक्षण यह है कि इसमें मरीज का पेशियों पर पूरी तरह से नियंत्रण खत्म हो जाता है। मरीज पूरी तरह से औरों पर निर्भर हो जाता है। आमतौर पर जीबीएस के लक्षण वायरस का संक्रमण होने के कुछ दिन बाद अचानक से नजर आने लगते हैं।