————–विकास की आंधी, पर्यावरण की बर्बादी————–
भोपाल। हरे-भरे और झीलों के शहर के नाम से प्रसिद्ध भोपाल ( bhopal ) में देखते ही देखते कॉन्क्रीट के जंगल आबाद हो गए। विकास ( development ) के लिए ग्रीन बेल्ट ( green belt ) खत्म कर दिए गए। तालाब अतिक्रमण का शिकार हो गए। अब तक हुए अध्ययनों और आई रिपोर्टों में राजधानी की ( global warming effects in bhopal ) भयावह तस्वीर सामने आई है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् टीवी रामचन्द्रन की रिपोर्ट के अनुसार भोपाल में 1992 में 66 फीसदी हरियाली थी, जो 2009 में 35 फीसदी रह गई। अब मात्र नौ फीसदी बची है। ग्लोबल अर्थ सोसाइटी फॉर एनवायरमेंटल एनर्जी एंड डेवलमेंट (जीसीडी) की ओर से स्थापित जनता की लैब ने भी शोध में पाया कि 1995 में शहर में 65 फीसदी हरियाली थी, अब नौ फीसदी बची है। 2030 में मात्र चार फीसदी रह जाने का अनुमान है। शहर के कई क्षेत्रों में 2009 और 2019 के बीच की तस्वीरों की तुलना में पाया कि शहर के ग्रीन कवर में कमी आई है। मौसम की बेरुखी की वजह यही है।
कटे तीन लाख पेड़
जीसीडी रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2019 के बीच नौ क्षेत्रों में 225 एकड़ हरित इलाके से 96 हजार पेड़ काट दिए गए। अन्य जगहों की कटाई को शामिल करें तो आंकड़ा तीन लाख पार कर जाता है। इनमें ढाई लाख पेड़ 40 साल से भी अधिक पुराने थे।
डिकेडल डीफॉरेस्टेशन ऑफ भोपाल सिटी 2009-2019 रिपोर्ट के अनुसार भोपाल में एक दशक में 26 प्रतिशत हरियाली घट गई है। शहरीकरण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक दशक में भोपाल की आबादी में पांच लाख का इजाफा हुआ है।
टीएंडसीपी के डायरेक्टर राहुल जैन कहते हैं कि भोपाल मास्टर प्लान लाने के लिए हम काम कर रहे हैं। अगले चार से पांच माह में मास्टर प्लान ले आएंगे। अब देरी क्यों हुई, इसका जवाब नहीं दे सकते।
बढ़ता शहरीकरण: राजधानी की सेहत खराब
40 साल में शहर का दायरा 570 वर्ग किमी बढ़ गया है। जो क्षेत्र बाग-बगीचों के लिए प्रसिद्ध थे, वहां कॉन्क्रीट के जंगल उग आए हैं। कमला पार्क से शुरू होने वाला जंगल सिमटते हुए अब कलियासोत, केरवा के छोटे से हिस्से तक रह गया। यहां भी निर्माण जारी है। हरियाली शहर के 11 फीसदी क्षेत्र तक सिमटकर रह गई।
इतना ही नहीं, शहरीकरण के चलते बड़े-बड़े क्षेत्रों की सतह सीमेंट कांक्रीट से पक्की कर दी, जिससे न बारिश का पानी जमीन में उतर पा रहा है न कोई पौधा पनप पा रहा है। भोपाल को लेकर हो रहे अध्ययन की रिपोट्र्स पर ध्यान दें तो शहरीकरण के नाम पर इसी तरह हरियाली खत्म होती रही तो आगामी दस साल में महज शहर के महज 4 फीसदी क्षेत्र में आपको पेड़-पौधे नजर आएंगे।