-संयम
24 घंटे में से 25 घंटे आप अपने दिमाग के काबू में रहते होंगे। संयम से इस परिस्थिति को पलट दें क्योंकि संयम ही तप है। ठेठ भाषा में कहें तो ठान लेना, जिद करना या हठ करना। यदि तुम व्यसन करते हो और संयम नहीं है तो मरते दम तक उसे नहीं छोड़ पाओगे। इसी तरह गुस्सा करने या ज्यादा बोलने की आदत भी होती है। मतलब यह कि व्यसन करने और क्रोध करने से शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। संयम की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प लेकर कर सकते हैं। जैसे आप संकल्प लें कि आज से मैं खुश रहूंगा। स्वस्थ रहना और सर्वाधिक योग्य होने से ही नहीं बल्कि व्रत के जरिये भी संयम साधा जा सकता है। आहार-विहार, निंद्रा-जाग्रति और मौन तथा जरूरत से ज्यादा बोलने की स्थिति में संयम से ही स्वास्थ्य तथा मोक्ष घटित हो सकता है। संयम नहीं है तो यम, नियम, आसन आदि सभी व्यर्थ सिद्ध होते हैं।
-ईश्वर प्राणिधान
योग के अनुसार ईश्वर प्राणिधान का अर्थ यह भी है कि किसी एक ही देवी या देवता के प्रति ही दृढ़ रहना या एकेश्वरवादी ही बनकर रहना। जीवनपर्यंत किसी एक पर चित्त को लगाकर उसी के प्रति समर्पित रहने से चित्त संकल्पवान, धारणा सम्पन्न तथा निर्भिक होने लगता है। ये जीवन की सफलता के लिए बेहद जरूरी है। जो व्यक्ति ग्रह-नक्षत्र, असंख्य देवी-देवता, तंत्र-मंत्र और तरह-तरह के अंधविश्वासों पर विश्वास करता है, उसका संपूर्ण जीवन भ्रम, भटकाव और विरोधाभासों में ही बीत जाता है। इससे निर्णय हीनता का जन्म होता है। आप सोच रहे होंगे कि इसकी क्या जरूरत है तो यह बहुत जरूरी है क्योंकि इसी से आप अपने दिमाग को दृढ़ संकल्पित होकर किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटने में सक्षम होगा।
-अंग संचालन
अंग-संचालन को दूसरे शब्दों में सूक्ष्म व्यायाम भी कहा जाता है। इसे आसनों की शुरुआत में किया जाना सबसे बढ़िया होता है। इससे शरीर आसन करने लायक तैयार हो जाता है। सूक्ष्म व्यायाम के अंतर्गत नेत्र, गर्दन, कंधे, हाथ-पैरों की एड़ी-पंजे, घुटने, नितंब-कुल्हों आदि सभी की बेहतर वर्जिश होती है, जो हम थोड़े से समय में ही कर सकते है। इसके लिए किसी अतिरिक्त समय की आवश्यकता नहीं होती। आप किसी योग शिक्षक से अंग-संचालन सीखकर उसे घर पर भी कर सकते हैं।
-प्राणायाम
अंग-संचालन करते समय अगर आप साथ में अनुलोम-विलोम प्राणायाम भी जोड़ देते हैं तो यह एक तरह से आपके भीतर के अंगों और सूक्ष्म नाड़ियों को शुद्ध-पुष्ट कर देगा। हालांकि, प्राणायाम को पूरी तौर पर सीखकर करने में ही फायदा होगा, इसलिए योग एक्सपर्ट्स की निगरानी में ही शुरुआत में इसे किया जाए।
-ध्यान
ध्यान के बारे में तो अकसर लोग जानते हैं। ध्यान हमारी ऊर्जा को फिर से संचित करने का कार्य करता है, इसलिए सिर्फ पांच मिनट का ध्यान आप कहीं भी कर सकते हैं। खासकर सोते और उठते समय करना सेहत के लिए बहुत लाभरारी होता है।
-योगा मसाज और स्नान
योग मसाज और स्नान के बहुत से चरण होते हैं। कम से कम तीन माह में एक बार योग अनुसार मसाज और स्नान करने से शरीर फिर से तरोताजा होकर युवा बना रहता है। यह व्यक्ति की थकान, चिंता, रोग आदि को दूर करने में सक्षम है। तनाव और प्रदूषण भरे माहौल से निकल कर व्यक्ति हल्का और तरोताजा होना चाहता है इसी के चलते योगा रिजॉर्टों में आजकल इसका प्रचलन बढ़ गया है, लेकिन आप चाहे तो इसे घर में भी कर सकते हैं।
-योग में होती है दो तरह की मुद्राएं
योग मुद्राएं- योग मुद्राएं दो तरह की होती है। एक हस्तमुद्रा और दूसरी आसन मुद्रा। आप हस्तमुद्राओं को सीखकर उन्हें समय समय पर करते रहें। दस हस्तमुद्राएं प्रमुख हैं- 1.ज्ञान मुद्रा, 2.पृथवि मुद्रा, 3.वरुण मुद्रा, 4.वायु मुद्रा, 5.शून्य मुद्रा, 6.सूर्य मुद्रा, 7.प्राण मुद्रा, 8.लिंगा मुद्रा, 9.अपान मुद्रा, 10.अपान वायु मुद्रा।